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भगवती सूत्रे किन्त उत्पद्यन्ते इति प्रश्नस्य जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा उत्कृष्टतः संख्याता वा एकसमये उत्पद्यन्ते नरकावासे इत्युत्तरम् । एतद्व्यतिरिक्तं सर्वमेव प्रश्नोत्तरादिक प्रथमवदेव ज्ञातव्यम् । अवगाहनासमुद्घातज्ञानाज्ञानस्थित्प नुबन्धेषु चतुर्थगमत्रदेव द्रष्टव्यम् अवशिष्टं सर्व संहननादिकं भवादेशपर्यन्तं प्रथमगमवदेव ज्ञातव्यम् पूर्वापेक्षया वैलक्षण्यं कालादेशे तत्स्वयमेव सूत्रकारो दर्शयति 'नवरं' इत्यादिना, 'नवर कालादेसेणं' नवरम् - केवलं काळादेशेन-कालापेक्षया 'अहनेणं सागरोवमं मासदुत्तमम्भहियं जघन्येन सागरोपमम् मासपृथक्त्वाभ्य
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नरकावास में एक समय में कितने जीव उत्पन्न होते हैं ? तो इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं- हे गौतम ! वहां एक समय में जघन्य से एक अथवा दो अथवा तीन तक जीव उत्पन्न होते हैं और उत्कृष्ट से संख्यात जीव वहां उत्पन्न होते हैं । इस कथित भिन्नता के सिवाय और सब कथन - प्रश्नोत्तर आदि रूप कथन- प्रथम गम के जैसा ही जानना चाहिये, तथा अवगाहना, समुद्घात, ज्ञानाज्ञान, स्थिति एवं अनुबन्ध - इन द्वारों में जो यहां प्रथम गम की अपेक्षा भिन्नता है वह सब चतुर्थ गम की कथित शैली के अनुसार समझ लेना चाहिये, तथा अवशिष्ट समस्त संहनन आदि का कथन भवादेश तक प्रथम गम के कथन के जैसा ही जानना चाहिये, तथा काल की अपेक्षा जो यहां भिन्नता है - उसे सूत्रकार स्वयं ही 'नवर' इत्यादि सूत्रपाठद्वारा प्रगट कर रहे हैं - वे इसमें कह रहे हैं कि वह जीव काल की अपेक्षा 'जहन्नेणं सागरोचमं मासपुहुत्तमन्भहियं ०' मासपृथक्त्व से अधिक एक
એક સમયમાં કેટલા જીવા ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ તેઓને કહે છે કે-હૈ ગૌતમ! ત્યાં એક સમયમાં જઘન્યથી એક અથવા એ અથવા ત્રણ જીવ સુધી ઉત્પન્ન થાય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી સખ્યાત જીવેા ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે. આ ભિન્ન પણા શિવાય બીજુ તમામ કથન-પ્રશ્નોત્તર વિગેર રૂપનું કથન-પહેલા ગમમાં કહ્યા પ્રમાણે છે. તેમ સમજવું. તથા અવગા ईना, समुद्घात, ज्ञान, अज्ञान, स्थिति भने अनुषध मे द्वारामां महेसा ગમ કરતાં જે ભિન્નપણું છે, તે તમામ ચેાથા 'ગમમાં કહેલ શૈલી પ્રમાણે छे. અને ખ કીત્તું 'હુનન વિગેરેનું તમામ કથન ભવદેશ સુધી પહેલા ગમના કથન પ્રમાણે જ સમજવું. તથા કાળની અપેક્ષાએ અહિયાં में नुहायागु छे. ते सूत्रार पोते 'नवर'' याहि सूत्रपाठ द्वारा अगर रे छे. तेथे या विषयभां मते व अजनी अपेक्षाथी 'जहपणेणं