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प्रमेयमन्द्रिका टीका श०२१ व. ७ हरितवनस्पतिजीवानामुत्पादादिकम् - २७३
छाया-अथ भदन्त ! अभ्ररुवायणहरितकतन्दुलीयतृणवाथुलपोरकमार्जारिका बिल्लीपालकदकपिप्पली दर्वी स्वस्तिकशाकमण्डकीमूलकसर्पपाम्लशाकेत. जिवन्तकानाम् एतेषां खलु ये जीवा मूलतयाऽस्क्रामन्ति ते खलु जीप कुत उत्पधन्ते किं नैरपिकेभ्य स्तिग्भ्यो मनुष्येभ्यो देवेभ्यो वा० एवमत्रापि दशोद्देशका यथैव वंशवः ॥०१॥
॥ एकविंशतिशतके सप्तनो वर्गः समाप्तः ॥ टीका-'अह भंते !' अथ भदन्त ! 'अन्भरुह' अभ्ररु:-अत्रे-आकाशे रोहति । भूमिमुद्भिद्य समुद्भवति यः सोऽभ्ररुहः मेघर्षणानन्तर जायमानः पावृश्कालिका छत्राकाभिधः शाकविशेषः 'चायण' वायणनामकः शाकविशेषः 'हरितग' हरितका शाकविशेष एवं तदुलेज्जग तन्दुलीयकः शाफविशेषः तान्दलभाजीति लोकमसिद्धः 'तण' तृणाकार, पत्रवनस्पतिविशेषः 'वत्थुल' वस्तुला वथुमा
टीकार्थ-'अह अंते' हे भदन्त ! अरुह-वायण-हरितग-तंदुलेज्जग' अभ्ररुह, वायण, हरितक, तंदुलीयक, तृण, वस्थुल, -पोरक, मार्जारिका, पिल्ली, पालक्क, दगपिप्पली, दर्वी, स्वस्तिक, शाकमंडकी, मूलक, सरसव, अपिलशाक, एवं जियंतग, इन वनस्पतियों के मूलरूप से जो जीव उत्पन्न होते हैं-वे वहां कहा से आकरके उत्पन्न होते हैं ? जो वनस्पति भूमि को फोड़कर जाती है ऐसी वह बनस्पैनि अभ्ररुह कही गई में इसे भाषा में छत्रक कहागया है, जंगल आदि प्रदेशो में यह चातुर्मास में छत्ते के आकार जैसी होती है 'वायण' इस नाम का शाकविशेष होता है-हरितक यह भी एक प्रकार का शाक ही है जिसे भाषा में तान्दलियाकी भाजी कहते है वहां तन्दुलीयक ___ -अह भते !' है त 'भभाह-वायण हरितग तंदुलेन्जग' म३७, पाय, Ras, dails, तृy, पत्थुख, पा२४, भा , मिcell, पास गqिueी, ही स्पति, शमी , भूबर, सरस, AME શાક અને જયંતગ, આ વનસ્પતિના મૂળ રૂપે જે જીવ ઉત્પન્ન થાય છે, તેઓ ત્યાં કયાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? જે વનસ્પતિ પૃથ્વીને ફાડીને ઉગે છે તેવી વનસ્પતિ અબ્રરૂહ કહેવાય છે, તેને ભાષામાં છત્રક કહે छ. सन प्रशामा योभासामा छत्रीनी १२ वी थाय छे. 'वायण । આ શાક વિશેષતું નામ છે, હરિતક એ પણ એક જાતના શાક. વિશેષનું નામ છે. જેને ભાષામાં તાંદલિયાની તાજી કહેવામાં આવે છે તેને અહિયાં
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