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भगवती सूत्रे पृथिव्याः 'अंतरा' मध्ये 'समोहए' समवहतः - मारणान्तिकसमुद्धातं कृतवान् 'समोहणित्ता' समवहत्य - मारणान्तिकसमुद्धातं कृत्वा 'जे भविए' यो भव्यः -- भवितुं योग्यः 'सोहम्मे कप्पे' सौधर्मे कल्पे 'पुढवीका इयत्ताए उवजित्तए ' पृथिवीका विकतया - पृथिवी जीवस्वरूपेण उत्पत्तुम् योग्यः, 'से णं भंते!' स खलु जीवो भदन्त ! 'पुत्रि उववज्जित्ता' पूर्वमुत्पथ 'पच्छा आहारेज्ज' पश्चात् - छड उद्देशे का प्रारम्भ
अब छट्ठे उद्देशे का प्रारम्भ होता है, इस उद्देशे का संक्षिप्त विषय विवरण इस प्रकार से है, पंचम उद्देशे में पुलों के परिणाम का विवरण किया गया है छट्टे उद्देशे में पृथिव्यादिक जीवों के परिणाम का कथन किया जायगा इस संबंध से आए हुए छडे उद्देशे का सर्वप्रथम सूत्र है - 'पुढचिकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए' इत्यादि ।
टीकार्थ - इस सूत्र द्वारा गौतम प्रभु से ऐसा पूछ रहे हैं कि'पुढचीकाइए णं भंते !' हे भदन्त ! कोई पृथिवीकायिक जीव ऐसा है 'इमीले रयणप्पभाए सकरप्पभाए य अंतरा' कि जिसने इस रत्नप्रभा पृथिवी और शर्कराप्रभा पृथिवी के बीच में मरण समुद्वात किया है और 'समोहणित्ता' मरणसमुद्यात करके 'जो भविए सोहम्मे कप्पे पुढवीकाइयत्ताए उबवनित्तर' अप वह सौधर्म देवलोक में पृथिवीकायिकरूप से उत्पन्न होने के योग्य बन गया है - तो 'से णं भंते !' हे भदन्त | ऐसा वह जीव 'पुर्विच उचवजित्ता पच्छा०' पहिले वहां छठ्ठा उद्देशानो प्रारंभ -
હવે છઠ્ઠા ઉદ્દેશાના પ્રારભ કરવામાં આવે છે. આ ઉદ્દેશાનુ સક્ષેપથી આ પ્રમાણેનું વિવરણુ છે. પાંચમાં ઉદ્દેશામાં પુદ્ગલેાના પરિણામનુ આ વિવેચન કરવામાં આવેલ છે. આ છઠ્ઠા ઉદ્દેશામાં પૃથિયાદિ જીવેાના પરિણામનુ` કથન કરવામાં આવશે આ સ'મ'ધથી આવેલા આ છઠ્ઠા ઉદ્દેશાનું સર્વપ્રથમ સૂત્ર प्रभा छे. - पुढविकाइए णं भंते । इमोसे रयणपभाए' धत्याहि ટીકા”—આ સૂત્રથી ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછ્યું' છે કે 'पुढवीकाइए णं भंते!' हे भगवन् । पृथ्वियि लवमेव। छे ! - 'इमीसे रयणप्पभाए, सकरप्पभाए य अंतरा' ने मा रत्नअला पृथ्वी मने शरा अला पृथ्वीनी वयमां भणु सभुद्धात रेस हे भने 'समोहणित्ता' भरयु सभुद्दुधात ४रीने 'जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढवीका इयत्ताए उववज्जित्तर' सौधर्भ દેવલાકમાં તે પૃથ્વિકાયિકપણાથી ઉત્પન્ન થવા ચૈાગ્ય બનેલ છે. તે છે નં