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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २० उ.१० सू०४ नैरयिकाणां द्वादशादिसमर्जितत्वम् १७५ द्वादशकैः समर्जिताः, एकसमये अनेकद्वादशसंख्यया समुत्पन्नाः द्वादशक समर्जिताः, इति कथ्यन्ते४ । 'बारसएहि य नो वारसरण यसमज्जिया५' द्वादशके नों द्वादशकेन च समर्जिताः अनेकद्वादशैस्तथा एकादारभ्य एकादशपर्यन्तान्यतम संख्यया सह एकस्मिन् समये समुत्पन्ना द्वादशकैश्च नो द्वादशकेन समर्जिता इति कथ्यन्ते५ । तदेवं द्वादशसंख्यामादाय नारकाणामुत्पतिविषयका प्रश्नः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'नेरइया बारससमज्जिया वि जाव बारसएहि य नीबारसएग य समज्जिया वि' नैरयिकाः द्वादशसमर्जिता अपि द्वादशकैश्च नो द्वादशकेन च समजिता अपि, हे गौतम ! नारका द्वादशसमजिता अपि१, नो द्वादशसमर्जिता अपिर, द्वादशकेन नोद्वादश केन समर्जिता अपि३, द्वादश समर्जिता अपि४, द्वादशकैश्च नो द्वादशकेन च समर्जिता अपि५, भवन्ति, अत्र यावत् पदेन द्वितीयतृतीयचतुर्थविकल्पानां संग्रहो भवतीत्युत्तरम् । द्वादशादि- होना अथवा 'बारसेहि समज्जिया' एक समय में वे अनेक बादशों की संख्या में उत्पन्न होते हैं ? अथवा-बारसेहिं य नो बारसरण य समज्जिया५' एक समय में अनेक द्वादश की संख्या में तथा एक से लेकर एकादश तक की किसी एक संख्या में उत्पन्न होते हैं इस प्रकार के ये पांच प्रश्न नारकों की उत्पत्ति के विषय में गौतम ने प्रभु से पूछे हैं-इनके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं-'गोयमा ! नेरच्या बारससमज्जिया वि जाव पारसएहि य नो बारसरण य समज्जिया विहे गौतम! नारक बादशसमर्जित भी होते हैं ? नो छादश समर्जित भी होते हैं २ एक बादशक से और एक नो द्वादश से भी समर्जित होते हैं ३ बादशकों से भी समर्जित होते हैं४ अनेक द्वादशकों से और एक नो द्वादश से भी समर्जित होते तेनु' नाम ना द्वारा सभी छे. मथ! 'बारसेहिं समज्जिया' में सभी यमा तयो मन शानी स्यामा प1 थाय छ ? अथवा 'बारसेहिय नो बारसरण य समज्जिया'५ मे समयमा सने मारनी सध्यामां तथा એકથી લઈને ૧૧ અગીયાર સુધીની કેઈપણ એક સંખ્યામાં ઉત્પન્ન થાય છે? આ રીતે ગૌતમસ્વામીએ નરકની ઉત્પત્તિના સંબ ધના પાંચ પ્રશ્નો भगवान पूछया छ, मा प्रश्नान उत्तरमा प्रभु छे -गोयमा ! नेर. इया बारसत्रमजिया वि जाव बारमएहि य नो बारसएण य समन्जिया वि' है ગૌતમ! નારકો દ્વાદશ સમજીત હોય છે.૧, ને દ્વાદશ સમજીત પણ હોય છે. ૨. એક દ્વાદશથી અને એક ને દ્વાદશથી પણ સમજીત હોય છે.. દ્વાદશકથી પણ સમજીત હોય છે, અનેક દ્વાદશકથી અને એક ને દ્વાદશથી