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प्रमैयचंन्द्रिका टीका श०२० उ.१० सू०३ नैरयिकादीनां पट्टकादिसमर्जितत्वम् १६३ बहुत्वविषयका प्रश्नः। भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'सव्यस्थोपा सिद्धा छक्केहि य नोछक्केण य समज्जिया' सर्वरतोकाः सर्वेभ्योऽल्पीयांसः सिद्धाये षट्कैश्च नो षट्केन च समजिचाः पश्चमविकल्पयुक्ताः सिद्धाः सर्वापेक्षया न्युना, 'छक्केहि समज्जिया संखेजगुमा' षट्कै सममिताः संख्येयगुणा अधिकार, पञ्चमविकल्पविकल्पितसिद्धापेक्षया:: चतुर्थविकल्पविकल्पिता: सिद्धाः संख्यातगुणा अधिका भवन्तीति । 'छक्केण य नो छक्केण य समज्जिया संखेज्जगुणा' षट्कन च नो षट्केन च समर्जिताः सिद्धाः चतुर्थ विकल्पयुक्तसिद्धापेक्षया संख्यातगुणा अधिका भवन्ति । 'छक्कसमज्जिया संखेज्जगुणा' 'पटकसमर्जिताः सिद्धाः संख्यातगुणाः अधिका भवन्ति, 'नो छक्कसमज्जिया संखेजगुणा' नो पदकसमकिनकी अपेक्षा विशेषाधिक हैं ? इस प्रकार के इन सिद्ध संबंधी अल्प घहुस्व विषय के प्रश्नों के उत्तर में प्रभु उत्तर देते हुए गौतम से कहते हैं'गोयमा ! सम्वत्थोवा सिद्धा छक्केहि य नो छक्केण य समज्जिया' हे गौतम ! सबले कम सिद्ध वे हैं जो अनेक षट्कों से एवं एक नो षटक से समर्जित होते हैं । 'छक्केहि लमज्जिया संखेज्जगुणा' तथा जो सिद्ध केवल अनेक षटकों से लमर्जित होते हैं ऐसे वे सिद्ध पंचमविकल्पवाले सिद्धों की अपेक्षा संख्यातगुणे अधिक होते हैं। 'छक्केण य नो छक्केण यसमज्जिया संखेज्जगुणा' जो सिद्ध एक षट्क से और एक नो षट्क से समर्जित होते हैं वे सिद्ध चतुर्थविकल्पचाले सिद्धों की अपेक्षा संख्यातगुणें अधिक होते है । 'छक समज्जिया संखेज्जगुणा' जो सिद्ध छकषट्कसमर्जित होते हैं वे सिद्ध संख्यातगुणे अधिक होते हैं । 'नो छछઅપેક્ષાએ વિશેષાધિક છે? એ પ્રકારના સિદ્ધના અલ્પ બહુત્વ સંબંધી આ प्रश्नीन। त्तरमा प्रभु गौतभावामान ४ छ -'गोयमा ! सव्वत्थोवा सिद्धा छक्केहि य नो छक्केण य समन्जिया' ७ गौतम! सौथी १५ ते સિદ્ધ હોય છે, કે જેઓ અનેક પકેથી અને એક ને ષકથી સમજીત डाय छे. 'छक्केहिय समज्जिया संखेज्जगुणा' तथा २ सि qण मन ષથી સમજીત હોય છે, એવા તે સિદ્ધ પાંચમા વિકલ્પવાળા સિદ્ધોની भक्षामे सध्याdug! अधिर डाय है. 'छक्केण य नो छक्केण य समन्जिया संखेज्जगुणा'२ सिद्धो ४ ५४४थी मन मे न पट्थी सम खाय છે, તે સિદ્ધો ચોથા વિકલ્પવાળા સિદ્ધ કરતાં સાતગણું અધિક હાર્યા છે, 'छक्कसमज्जिया संखेज्जगुणा' में सिद्धी ७४-पट्४ समताय छ, त सिद्धी सन्यात! मधि डाय छे. 'नो छक्कममज्जिया संखेज्जगुणा'