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reeन्द्रिका टीका श०२० ३०९ ०२ जानारणस्य गत्यादेर्निरूपणम्
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प्राप्नोतीत्यर्थः, 'करिता' नन्दीश्वरद्वीपं गत्वेत्यर्थः 'तर्हि चेहयाई चंदर' तत्र चत्यानि चन्द 'वंदिता' बन्दिला 'इमागन्छ' इहागच्छति यस्मात् स्थानात् प्राथमिक मुत्पातं कृतवान तत्रागच्छतीत्यर्थः 'आगच्छित्ता इहं चेहयाई बंद' आगत्य ह चैत्यानि वन्दते 'जंघाचारणस्स णं गोयमा' जंपाचारणस्य खल गौतम ! 'तिरिए एवए गइसिए पनते' निर्यग् एतावान, गतिविषयो-गमनक्षेत्रं मनः- कथित इति । उक्तञ्च जंघाचारणस्य तिर्यग्गतिविषये
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'गुप्पापण तओ, रुयगवरम्मि उ तभी पडिनियतो । विईएणं नंदीसरमिह तओ एड़ तइणं ॥ १ ॥
छाया - एकोपानेन ततः कनकवरे तु ततः पतिनिवृत्तः । द्वितीये नन्दीश्वरे, इह तत पति तृतीयेन || १ || इति
आठवें द्वीप में पहुंचता है 'करिता तहिं चेहयाई वंदन' पशं पहुंचकर वह जिनेन्द्र के श्रुन आदि ज्ञानों की वन्दना करता है 'वंदित्ता इहमागच्छद्द' वन्दना करके फिर वह अपने उस प्रथम स्थान पर कि जहां से उसने प्राथमिक उत्पात किया था आ जाता है, आगच्छता' वहां आकर के वह चों की जिनेन्द्र के श्रुत आदि ज्ञानों की वन्दना करता है 'जंघाचारणस्स णं गोपमा०' इस प्रकार का है गौतम ! यह जंघाधारण की तिर्यग्गति का विषयक्षेत्र कहा गया है मध्यलोक का नाम तिर्यग्लोक है रुचकवर आदि द्वीप इसी मध्यलोक में है सो जंधाचारणमुनि की गति का विषय तिर्यग्लोक में वहां तक कहा गया है, पही बात इस गाथा द्वारा प्रगट की गई है - ' एगुप्पापण तओ' इत्यादि ।
ये छे. 'करिता वहिं चेहयाई बंद' त्यां पशीने ते छरेन्द्रनाश्रुत विगेरे ज्ञाननी वहना रे छे. 'बंदिशा इमागन्छ' पहनाने ते ही ते પેાતાના પહેલાના સ્થાન પર કે જ્યાંથી તેઓૢ પહેલે ઉત્પાત કર્યા હતા ત્યાં ખાવી જાય છે. ‘જ્ઞાટિન્ના' ત્યાં આવીને તે ચૈત્યેનીજીનેન્દ્રના મૃત
विगेरे ज्ञानानी वहना ४रे हे जंषाधारणम्म णं गोयमा । सेोनम भा પ્રમાÌન જ ધાગાજીનું તિય ચગતિની વિષયોન્ન કરેલ છે, મધ્યમાઠનુ નામ તિય લેક છે. ચકવર વગેરેની એજ મહેકમાં છે, સુનિની ગતિને વિષય નિર્લેમાં ચાં યુપીનેા કરેલ છે, સેન્ટ વાન 'गुप्पारण तलो' इत्याहि गाथा द्वारा स्टेस हे.
ચારણું