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________________ प्रगयन्द्रिका टीका २०२० उ०९, १-२ जमावारणम्य गत्या निरूपणम् १९ लब्धिनाम्नी लन्धिः-अतिशयविशेषः समुपमा समचते-आविर्भवति इत्यधैः यया लध्या आकागगमनं भक्ति नाभी लब्धिः प्रादुर्भवतीति भावः । 'से तेणग जार जंघाचारगार' तत्तेनाथन यावन् जंघावारणाः२, हे गौतम ! अनेन कारणेन कथयामि यदीमे जंघाचारणश्यव्यपदेश्या जयोपरिकरम्पर्शमा घेणव गमनागमनसमर्था गवन्तीति। 'जपाचारणस्म णं मंने : जंघाचारणस्य खलु भदन्त ! 'फहं सीहा गई कीदृगी शीघ्रा गतिः 'कह सोहे गनिविसए' कीदृशा शीघ्रों गतिविषयः पन्नने' प्रज्ञान इति प्रश्नः । भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'अयणं जंबुद्दीवे दीवे' अयं स्यन्तु जम्होरो द्वीपः 'एवं जव विज्ञा. चारणस्स' एवं यथै विद्याचारणस्य विषये कथिनं तथैवात्रापि विजेयम्, तथा प. चासित करते हैं उनको जंघाचारण नानकी लब्धि प्राप्त हो जाती हैप्रकट हो जाती है-यह लब्धि एक अतिशयविशेषरूप होती है इस लब्धि के प्रभाव से इस लब्धिवाले का गमन आकाश में होता है इसी कारण से हे गौतम में ऐसा कहता है कि ये जंघाचारण शब्द हारा व्यपदेश्य होते हैं। क्योकि ये जंघा पर हाथ रखने मात्र से ही आकाश में गमन करने में समर्थ हो जाते हैं। अब गौतम इनकी गति कैसी शीघ्र होती है और कैसा उस शीघ्रगनि या विषय होता है-इस प्रश्न को 'जंघाचारणस्स णं भंते कहं सीहा गई, कई सीहे गईविसए.' इस सुत्रपाठहारा पूछते है-इसके उत्तर में प्रभु उनले कहते हैं-'गोयमा! अयणं नंदीचे दीवे एवं जहेच विज्ञापारणल०' हे गौतम ! विधाचारण की शीघ्रगति को प्रस्ट करने के लिये जैसा पहिले कहा गया है વાસિત કરે છે, તેઓને જ મારા નામની ખિ પ્રાપ્ત થાય છે. પ્રગટ થાય છે, આ લબ્ધિ એક એક અનિશ નિરૂપ છે,ય છે. આ લબ્ધિના પ્રભાવથી આ લધિવાળાનું નામ અને મા પણ છે એજ કારમી છે गीतमा 3-या " भीमा ઉપર હાથ રાખવા માત્રથી જ કામ = " કરવામાં રામ થઈ જાય છે. હવે ગીતનામ તેની ગતિ કેટ : એક છે અને તે શીશ गतिना Aru in 45 M IREE ! पर सीमा पार सहे गा मा छे. सामना उत्तर ताना .गोम: ! अन ती सोपे एवं नदेव विमाधारणमीनम: RRENनी : निन५१॥ माटे Rai
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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