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________________ ९५४ भगवतीस्त्रे गन्धवतोरविवक्षणात्, द्रव्यमात्रस्यैव विवक्षणात् । 'अरसे' अरस:-तिक्तादिरसरहितः रसानामविचक्षणात् 'अफासे' अस्पर्श:-कर्कशमृदुकगुरुकलघुकशीतोष्णस्निग्धरूक्षस्पर्शरहितः स्पर्शानामपि अविवक्षणात् , 'भावपरमाणू णं भंते !" भावपरमाणुः खल्ल भदन्त ! 'कइविहे पन्नत्ते' कतिविधः प्रज्ञप्त: भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'चाबिहे पनत्ते' भावपरमाणुश्चतिवधः चतुःपकारकः प्रज्ञप्तः कथितः। चातुर्विध्यमेव दर्शयति-तं जहा' तद्यथा'वनमंते वर्णवान-कृष्णनीललोहितहारिद्रशुक्लमभेदभिन्नपञ्चप्रकारकवर्णवान् दुरभिगन्ध इन दोनों प्रकार की भी गंध से रहित कहा गया है यद्यपि वहां परमाणु में गन्धगुण विद्यमान है फिर भी उसकी यहां विवक्षा नहीं हुई है। केवल काल (समय) द्रव्यमान की ही विवक्षा हुई है 'अरसे' वह कालपरमाणु अरस-तिक्तादि रसों से रहित होता है, यद्यपि उसमें वे विद्यमान रहते हैं फिर भी यहां उनकी विवक्षा नहीं हुई है-केवल समयमात्र की ही हुई है । 'अफासे' कर्कश, मृदुक, गुरुक, लघुक, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष इनके भेद से जो स्पर्श आठ प्रकार का कहा गया है वह भी उसमें नहीं रहता है इस कारण उसे अस्पर्श रूप से कहा है अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं'भावपरमाणु णं भंते ! काविहे पन्नत्ते' हे भदन्त ! जो भावपरमाणू है वह कितने प्रकार का कहा गया है उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! चउचिहे पण्णत्ते' हे गौतम ! भाव परमाणु चार प्रकार का कहा गया है-'तं जहा' जैसे-'वनमंते, गंधमते, रसमंते, फासमंते' वर्णवाला, अभाए छ-'वण्णमंते, गंधमंते,रसमंते, फासमं' वाणा वाणा, रसवाणा સુગધ દુરભિગંધ-દુર્ગન્ધ એ બન્ને પ્રકારના ગધ વિનાનું કહેવામાં આવેલ છે. જો કે ત્યાં પરમાણુમાં ગંધ ગુણ હોય જ છે. તે પણ અહિયાં તેની विवक्षा थ नथी. a द्रव्य भावना विवक्षा य छे. 'अरसे' ते ४० પરમાણુ અરસ-તિખા વિગેરે રસ વિનાનું હોય છે. જો કે તે રસ તેમાં વિદ્યમાન હોય છે પણ અહિયાં તેની વિવક્ષા થઈ નથી. કેવળ દ્રવ્ય માત્રની ४ विक्षा ४२वामा मापी छे. 'अफासे' ४४श भूड, ४३ वधु शीत, Grey, નિગ્ધ અને રૂક્ષ એ ભેદથી સ્પર્શ આઠ પ્રકારને કહેલ છે. તે પણ તેમાં રહેતું નથી, તેથી તેને “અસ્પર્શ સ્પર્શ વિનાને કહેલ છે, હવે ગૌતમ સ્વામી ભાવપરમ શુના સંબંધમાં પ્રભુને પૂછે છે કે 'भावपरमाणू णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते' मग मावपरमार दा प्रारना ४ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४३ छ है-'गोयमा! चउविहे पण्णत्ते' 3 गौतम भाव ५२मार यार प्रानुस छ. 'त जहा' त मा
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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