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________________ भगवतीसूत्र द्विपदेशिकस्कन्धेऽपि एको वर्णः, यदि वा परस्पर विभिन्नवर्णद्वयवस्या परमाणु भ्यां द्विपदेशिकः स्कन्धो जायते तदा तस्मिन् स्कन्धे वर्णद्वयं स्यात् , इत्यभि' प्रायेण कथितं स्यादेकवर्णः द्वयोरपि परमानोरेकवर्णवत्त्वात् , अत्र वर्णानां पञ्च. ‘त्वेन पञ्चविकल्पाः भवन्तीति । तथा स्याद् द्विवर्णः प्रतिपदेशं वर्णान्तरभावात् , अत्र वर्णानां पश्चत्वेन परमाणोर्युग्मत्वेन च दशविकल्पा जायते । एवमेव गन्धरसयोरपि ज्ञेयम् । 'सिय एगगंधे सिय दुगंधे' स्यात् एकगन्धः स्याद द्विगन्धः 'सिय तो उन दोनों समानजातीय परमाणु भो ले जायमान उस द्विप्रदेशी स्कन्ध में एक ही वर्ण होगा तथा यदि उन दोनों परमाणुओं, भिन्न २ दो वर्ण होगा तो उस द्विप्रदेशी स्कन्ध में भी दो वर्ण होगा इसी अभिप्राय से कहा गया है कि कदाचित् वह द्विपदेशी स्कन्ध एक वर्ण घाला भी होता है। और कदाचित दो वर्णशाला भी होता है। वर्ण पांच होते हैं । इसलिये यहां एक वर्णवस्वके कथन में पांच विकल्प होते हैं। तथा 'स्यात् द्विवर्णः' इस कथन में प्रतिप्रदेश में वर्णान्तर के सद्भाव से दशविकल्प हेाते हैं। और वे इस प्रकार से जानना चाहिये एक सफेद रंगशाले और एक हरे रंगवाले परमाणुद्वय के सम्बन्ध ले भी विप्रदेशी स्कन्ध हो सकता है, एक लफेद रंगवाले और एक पीले रंगवाले परमाणुश्य के संयोगले भी छिप्रदेशी स्कन्ध हो सकता है एक सफेद रंगवाले और एक काले रंगवाले परमाणुव्य के सम्बन्ध से भी द्विप्रदेशी स्कन्ध हो सकता है। इत्यादि इसी प्रकार का कर्थन गंध और रस के होने में भी जानना चाहिये। वह हिप्रदेशी स्कन्ध 'लिय एगगंधे, सिय दुगंधे' कदाचित् एक गंधगुणवाला होता है પરમાણુઓમાં જુદા-જુદા બે વર્ણ હોય તે તે બે પ્રદેશવાળા સ્કંધમાં પણ બે વર્ણ થશે. એજ અભિપ્રાયથી એવું કહેવામાં આવ્યું છે કે-કદાચિત્ તે બે પ્રદેશવાળે પણ હૈય છે. વર્ણ પાંચ હેય છે. તેથી અહિયાં એક વર્ણ પણાના ४थनमा पांच वि४६५ थाय छे. तथा "स्यात् द्विवर्ण: को थनमा प्रतिप्रशभा વન્તરના સદૂભાવથી દશ વિકલ્પ બને છે. અને તે આ રીતે સમજવા. એક સફેત રંગવાળે અને એક લીલા રંગવાળે? વિગેરે રૂપે સમજવા. બે પરમાશુના સંબંધથી પણ બે પ્રદેશવાળે સ્કંધ થાય છે. એક સફેત રંગવાળો અને એક પીળા રંગવાળે એમ બે પરમાણુના સાગથી પણ દ્વિપદેશિક કંધ બને છે. એક સફેત રંગવાળે અને એક કાળા રંગવાળા બે પરમાણુના સંબંધથી પણ દ્વિદેશી ઔધ થાય છે. ઈત્યાદિ. આજ રીતનું કથન ગીધ . अने. २सन १४२ ५ सभा मा विदेशी ४५ "सिय एगगंधे सिय ___, दुगंधे" हाय । ध गुणवाा ाय छ भने हायित् मे गध मुगुवा
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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