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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०६ सू०१ सचेतनामचेतनानामनेकस्वभावत्वम् ६३ इत्यर्थः 'कइफासे' कतिस्पर्शः लघुगुरुकादिषु आटविधेषु स्पर्शपु मध्ये कतमः स्पर्शी विद्यते 'पन्नत्ते' प्रज्ञप्ता-कथितः, भगवानाह-'गोयमा !' इत्यादि । 'गोयमा!' 'एस्थ णं दो नया भवंति' अत्र खलु द्वौ नयौ भवतः, अत्र प्रकृनविषये द्रवगुडस्य वर्णरसस्पर्शादिमत्वे द्वौ नयौ भवतः नीयते प्राप्यते विवक्षिता
र्थोऽनेनेति नया प्रमाणैकदेशः सत्सु बहुषु पदार्थेषु मध्यात् एकार्थावगाही नय इति फलितः, प्रकते द्वौ नयौ भवतः, कौ तौ द्वौ नयो तवाह-'तं जहा' इत्यादि। 'तं जहा' तथा 'निच्छइयनए य वावहारियनए य' नैश्चयिकनयश्च व्यावहाहै । तथा च द्रवता (गीला) गुगवाला जो गुड है वह फाणितगुड है। वह फाणितगुड कितने वर्णवाला है? 'कहगधे कितने गन्धवाला है? तथा 'कहरसे' कितने रसवाला है। 'कहफासे' कितने उसमें स्पर्श है? इसका तात्पर्य ऐसा है कि फाणितगुड में पांच रसों में से कितने रस हैं। पांच वर्षों में से कितने वर्ण हैं यावत् आठ स्पशों में से कितने उसमें स्पर्श हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा !' हे गौतम 'एत्थ णं दो नया भवंति' इस विषय का विचार करने के लिये यहां दो नय होते हैं विवक्षित अर्थ जिसके द्वारा अच्छी प्रकार से समझ लिया जाता है उसका नाम नय है। यह नय प्रमाण का एक देश कहा गया है। अनेक अर्थों में से एक अर्थ में अवगाह करनेवाली जो विचारधारा है। वही नय है प्रकृत में दो नय पतलाये गये हैं और ये दो नय नैश्चायिक और व्यावहारिक नय हैं । यही घात 'निच्छइथनए य' इत्यादि सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई है नैयत्य अर्थ -ઝરવું એ પ્રમાણે છે. તથા દ્રવતા ઝરવાના ગુણવાળો જે ગેળ છે, તે ફાણિત गाण ४पाय छे. माणित गण सा व पाणी छ ? “कइगंधे" साध सुशवाणी छे १ "कइरसे" या रसपान छ ? "कइफासे" मा सा५श છે? પૂછવાને હેતુ એ છે કે–ફાણિત ગોળમાં પાંચ રસોમાંથી કેટલા રસ છે? પાંચ વર્ષોમાથી કેટલા વર્ણ છે? બે ગંધમાંથી કેટલા ગંધ છે? તથા આઠ સ્પર્શેમાંથી કેટલા સ્પર્શ છે?
मा प्रशन उत्तरमा प्रभुई छ है-"गोयमा !" गौतम "एत्थ णं दो नया भवति" मा भामतना विया२ ४२वामा मडियां नयनी माश्रय ४२पामां આવે છે. વિક્ષિત અર્થ જેનાથી સારી રીતે સમજવામાં આવે તેનું નામનય છે. આ નય પ્રમાણેને એક દેશ કહેવાય છે. અનેક પદાર્થોમાંથી એક અર્થમાં અવગાહ કરવાવાળી જે વિચાર ધારા છે, તેજ નય છે. આ ચાલુ પ્રકરણુમાં नैश्वयि भने व्यव।२ नय से शत मे नय हा छ. मे पात "निच्छइय