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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०२ पुद्गलस्य वर्णादिमत्वनिरूपणम् ६९ रूक्षश्च २, स्यात् उष्णश्च स्निग्धश्च ३, स्यात् उष्णश्च रूक्षवेति चतुर्थस्तदेव स्पर्श. द्वयवत्वे चत्वारो भंगाः भान्तीति, 'जइ तिफासे, यदि त्रिस्पर्शः-स्पर्शत्रयवान् चतुःपदेशिकः स्कन्धस्तदा 'सध्वे सीए देसे निद्ध देसे लुक्खे १' सर्व: शीतो देशः स्निग्धो देशो रूक्ष इति प्रथमो भंग १ भंगव्यवस्था यहां पर भी हुई है ऐसा जानना चाहिये-परमाणुपुद्गल में दो स्पर्शवत्ता में ४ भंग कहे गए हैं जैसे-'स्थात् शीतश्च स्निग्धश्च १ स्यात् शीतश्च रूक्षश्च २ स्थात् उपगश्च स्निग्धश्च ३ स्यात् उष्णश्च रूक्षश्व' इसी प्रकार से थे चार भंग यहां बनते हैं । ___'जह तिफासे' यदि वह चतुःप्रदेशिक स्कन्ध तीन स्पर्शों वाला होता है तो वहां भंगव्यवस्था इस प्रकारसे होती है 'सव्वे सीए देखे निद्धे देसे लुक्खे' वह अपने समस्त देशों में शीत हो सकता है एकदेश में स्निग्ध और दूसरे देश में रूक्ष हो सकता है १ तात्पर्य इस कथन का ऐसा है कि चतुःप्रदेशिक स्कन्ध चार प्रदेशों से जन्य होता है-अतः उसके चारों ही प्रदेश शीतस्पर्शवाले हो सकते हैं और शीतस्पर्श वाले उन चारों प्रदेशों में ले ही शीतस्पर्श वाले कोई दो प्रदेश तो स्निग्ध स्पर्शवाले और शीत स्पर्शवाले कोई दूसरे दो प्रदेश रूक्ष स्पर्शवाले हो सकते हैं यही देश में स्निग्धता और रूक्षना है यह इस प्रकार का प्रथम भंग हैપરમાણુ યુદ્વલમાં બે પશુપણામાં ૪ ચાર ભંગ કહ્યા છે. જેમ કે, 'स्यात् शीतश्च स्निग्धश्च' १ स्यात् शीतश्च रूक्षश्च २ स्यात् उष्णश्च स्निग्धश्च ३' स्यात् उष्णश्च रूक्षश्च ४' मा शते । यार सांगामलिया 'जइ तिफासे नेते यार प्रदेशी २४५ ३ २५शवाजा जाय तो ते an मा प्रमाणे वा छे. 'सम्वे सीए देसे निद्ध देसे लुक्खे तोताना मया ॥ मागमा 31 ड शो છે. એક ભાગમાં સ્નિગ્ધ અને બીજા એક ભાગમાં રૂક્ષ હોય છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે-ચાર પ્રદેશવાળો કંધ ચાર પ્રદેશજન્ય હોય છે. જેથી તેના ચારે પ્રદેશે ઠંડા સ્પર્શવાળા હોઈ શકે છે. અને કંકાસ્પર્શવાળા તે ચારે પ્રદેશોમાંથી જ ઠંડા સ્પર્શવ ળા કોઈ બે પ્રદેશો રિનગ્ધસ્પર્શવાળા અને ઠંડા સ્પર્શવાળા બીજા બે પ્રદેશો રૂક્ષ સ્પર્શવાળા હોય છે. એજ દેશમાં સિનગ્ધતા ચિકાશ–ચિકણાપણું, અને દેશમાં રૂક્ષતા છે. આ રીતને આ पडेले यो छे.
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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