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- भंगवतीसूत्रे यिनुमाह-'जइ दुफासे' इत्यादि, 'जह दुफासे' यदि टिस्पर्शस्तदा 'सिय सीए य निद्रेय' स्यात् शीतश्च स्निग्धय शीतोष्णस्निग्धरूपचतुःस्पर्शमध्याव अविरोधिस्पर्शद्वयवान् यथा शीतश्व स्निग्धश्च 'एवं जहेत्र परमाणु शेरगले' एवं यथैव परमाणुपद्गलस्तथैव द्विपदेशिकस्कन्धोऽपि स्यात् शीतश्च स्निग्धश्च १ स्यात् शीतश्च रुक्षश्च २, स्यात् उष्णश्च स्निग्धश्च ३, स्यात् उष्णश्च रूक्षत्र इत्येवं रूपेण परमाणुपुंगलादेव द्विप्रदेशिकपुद्गलस्यापि द्विस्पर्शविपये चत्वारो भा भवन्तीति ।
आता है जैले स्यात् अम्लश्च मधुरश्च' १० इस प्रकार से आये हुए ये सप मिलकर असयोगी ५ और दिसंयोगी१० मिलकर १५ होते हैं तथा गंध विषयक भंग ३ होते हैं इस प्रकार वर्ण से लेकर रस तक के भङ्गों को प्रकट करके अब सूत्रकार इस विप्रदेशिक स्कन्ध में स्पर्श विषयक भङ्गों को दिखलाने के लिये कहते हैं-जह दुफासे सिय सीएप निद्धेय' यदि विप्रदेशी स्मन्ध दो स्पर्शों वाला होता है तो उसमें स्पर्शों की द्विप्रकारता इस प्रकार से हो सकती है-'सिय लिए य निद्धे य? सिय सीए य रक्खे यर' सिव उष्णश्च स्निग्धश्च ३, स्यात् उष्णश्च रूक्षश्च ४ इस प्रकार ले दो स्पशों के ये ४ अंग यहां होते हैं 'एवं जहेव परमाणु पोग्गले' परमाणु पुद्गल में जिला प्रकार से दो स्पर्शो के ४ भंग प्रकट किये गये हैं इसी प्रकार से यहां पर भी द्विप्रदेशी स्कन्ध में पूर्शक्त रूप से ४ भंग प्रकट किये गये हैं शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष इन चार स्पर्शी અને મીઠા રસને ગૌણ બનાવીને ભંગ બનાવવામાં આવે તે એક જ ભંગ मन छे. भ3-'स्यात् अम्लन्च मधुरम्य १' गरी मनेता सगा मया મળીને એટલે કે-અસંગી ૫-પાંચ અને બ્રિકસગી ૧૦ દસ મલીને ૧૫ પંદર ભંગ બને છે. તથા ગંધ સંબન્ધી ૩ ત્રણ ભંગ બને છે.
આ રીતે વર્ણથી આરંભીને રસ સુધીના ભ બતાવીને હવે સૂત્રકાર १५ समधी मी मतावा भाटे ४ छ -'जइ दुफासे सिय सीए य निद्ध यन्ते में प्रदेशवाणे २४ मे २५ वाले डाय छ त तमा ५५ तुं मारा 24 Na य छ-'खिय सीए य निद्धे य'१ सिय सीए य, रुक्खे य२, सिय उज्गश्च स्निग्धश्च ३, स्यात् उष्णश्च लक्षश्च४' यश मे २५ मा पूरित प्रारथी ४ यार म मन छे. 'एवं जहेव परमाणुपोग्गले' ५२. માણુ પુદ્ગલમાં જે રીતે બે સ્પર્શના ૪ ચાર ભંગ બતાવ્યા છે એજ પ્રમાણે " અહિંયા પણ બે પ્રદેશી ધમાં પહેલા કહ્યા પ્રમાણેના ૪ ચાર ભાગો બતાવ્યા छ. शी1, BY-१२म निय-थिए। भने ३१-२ मा या२१५i'