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भगवतीस्त्रे विद्यते ? इति प्रश्नः, उत्तरमाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! पंचविहे इंदियोवचए पन्नत्ते' पञ्चविधा-पञ्चप्रकारका इन्द्रियोपचयः प्रज्ञाशः, 'तं जहा' तद्यथा-'सोइंदियउवचए' श्रोत्रेन्द्रियोपचयः ‘एवं वीओ इंदियउद्देसमो निरवसेसो भाणियत्रो जहा पन्नवणाए' एवं द्वीतियइन्द्रियोद्देशको निरवशेषो भणितव्यो यथा प्रज्ञापनायास् , यथा-प्रज्ञापनायां पञ्चदशस्य इन्द्रियपदस्य द्वितीयउद्देशकस्तथाऽयमपि वक्तव्यः। प्रज्ञापनाया द्वितीयोद्देशक श्रेत्थस् , 'सोइंदियोवचएचक्खिदिओवचए-घाणिदिओवचए-रसगिदिभोवचए-फासिदिओवचए' इत्यादि श्रोत्रेन्द्रियोपचयश्चक्षुरिन्द्रियोपचयो घ्राणेन्द्रियोपचयो रसनेन्द्रियोपचयः स्पर्शनेन्द्रियोपचय इत्यादि । 'सेच भने ! सेयं भंते । ति भगवं गोयमे जाव विहरई' प्रकार का है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! पंचविहे इंदियोवचए पन्नत्ते' हे गौतम श्रोत्रादिश इन्द्रियों का उपचय पांच प्रकार का कहा गया है 'तं जहा' जैसे-'सोइंदियायचए' श्रोनेन्द्रिय उप. चय एवं घीओ इंदियउदेसओ निरक्सेसो मानियन्वो जहा पनवणाए' इस प्रकार से जैसा कथन प्रज्ञापना खून के १५ वे पद के द्वितीय उद्देशेमें कहा गया है उसी प्रकार से यहां पर भी कह लेना चाहिये वहां का दिनीय उद्देशे का कथन इस प्रकार से है-'सोइंदियोवचप, चविखदिओवचए' घाणिदिओवचए, इसणिदिभोशचए फालिदिओवचए' इत्यादि श्रोने न्द्रियोपचय चक्षुइन्द्रियोपचय घाणेन्द्रियोपचय रसनेन्द्रियोपचय और प्रारना छ १ मा प्रश्नना उत्तरमा प्रभु ४ छ है-'गोयमा! पंचविहे इंदयो वचए पन्नत्ते' 3 गीतमा श्रोत्र विगैरे छद्रियाना उपयय पांय सारना
डर छ. 'तजहा' ते मारी छे. 'सोइंदियउवचए' श्रोत्र द्रिय ६५च्य। 'एवं वीओ इंदियउद्देसओ निरवसेसो भाणियव्यो जहा पण्णवणाए' मा शते પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના ૧૫ પંદરમા પદના બીજા ઉદ્દેશામાં જેવી રીતે કહેવામાં આવ્યું છે, એજ રીતે અહિયાં પણ સઘળું કથન સમજવું. ત્યાંના બીજા देश ४थन ॥ प्रभारी छ.
_ 'सोइंदिओवचए, पक्खिदिओवचए, घाणिदिओवचए रसणिदिओवचए, फासिंदिओवचए' त्याहि श्रोत्र दिया५यय यक्षुद्रियो५यय, प्राधन्द्रिय પચય, રસના ઈદ્રિયાપચય અને સ્પર્શ ઈદ્રિપચય ઈત્યાદિ.
'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं गोयमे जाव विहरई' भगवन् मा५ દેવાનુપ્રિયે જે ઈન્દ્રિયાપચયના સંબંધમાં કથન કર્યું છે. તે સઘળું તેમ જ