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भगवतीसूत्रे कुमारो देवः स खलु नो प्रासादीयः 'नो दरिसणिज्जे' नो दर्शनीयः 'नो अभिरूवे' नो अभिरूपः 'नो पडिरूवे नो प्रतिरूपः 'से हमेयं भंते ! एवं' तत् कथमेतद् भदन्त ! एवम् ? हे भदन्त ! उभयोऽमुरकुमारत्वाविशेषात्वाथमेको दर्शनीयत्वादिगुणोपेतः अपरस्तु न तथा तत्र को हेतु ? रिति प्रश्नाशयः, भगवानाह-'गोयमा!' इत्यादि । 'गोयमा !' हे गौतम ! 'असुरकुमारा देना दुदिहा पन्नत्ता' असुरकुमारा देवा द्विविधाः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा' तथा 'वेरियमरीरा अवेउब्धियसरीरा य' वैक्रियशरीराश्च अक्रियशरीराश्च देवो यदा स्वामाधिकेन रूपेण अलंकाररहितरूपेण भवति तदा अक्रियशरीर इति कथ्यते, यदा खल्लु अलंकारादिना विभूषितशरीरो भवति तदा वैक्रियशरीर इति कथ्यते । 'तत्थ णं जे से वेउन्चिय'एगे असुरकुमारे देवे से णं नो पालाइए' तथा दूसरा असुरकुमारदेव प्रासादीय नहीं हुआ 'नो दरिलणिज्जे' दर्शनीय नहीं हुआ। 'नो अभिरुवे' अभिरूप नहीं हुआ। 'नो पडिस्वे' प्रतिरूप नहीं हुआ। 'से कहमेयं भंते ! एवं' तो हे भदन्त ! जब दोनों असुरकुमारों में असुरकुमारत्व की अपेक्षा काई विशेषता नहीं है तो फिर क्यों एक दर्शनीयत्वादिगुणों से युक्त है और दूसरा ऐसा नहीं है। इसमें क्या कारण है। इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'असुरकुमारा देवा दुदिहा पण्णत्ता' असुरकुमारदेव दो प्रकार के कहे गये हैं-'तं जहां-वेउम्विधलीराय अवेउनि य सरीराय' एक वैक्रियशरीरवाले और दूसरे अवै क्रियशीरचाले देव, जिस समय अपने अलंकार रहित स्वाभाविक रूप से युक्त रहता है, तब वह अवैक्रियपासाइए" तथा भान असु२४भारवि छ त प्रासाहीय-मन प्रसन्न ४२११ना२ हात नथी. "नो दसणिज्जे" शनाय३५वाना तो नथी. "नो अभिरूवे" मनि३५ मनत नथी. "नो पडिलवे" नारामान मान 64Mनार मनता नथी. “से कहमेय भंते ! एवं भगवन् मन्ने मसुरभारामा અસુરપણામાં કંઈ જ વિશેષપણ ન હોય તે એક દર્શનીય વિગેરે ગુણવાળે હોય છે. અને બીજે તે પ્રમાણે હોતે નથી તેમાં તેમ બનવાનું શું કારણ छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रमु छ । “गोयमा !" 8 गौतम ! "असुरकुमरा देवा दुविहा पण्णता" असुरभा२ देव मे प्रारना डाय छे. "तंजहा" -वेउव्वियसरीरा य अवेउबियसरीरा य" मे वैठिय शरीरवाणा सुरभारदेव અને બીજા અવૈક્રિય શરીરવાળા અસુરકુમાર દેવ-દેવ જ્યારે પોતાના અલંકર વિના સ્વાભાવિક રૂપથી યુક્ત રહે છે ત્યારે તે અકિય શરીરવાળે કહેવાય છે,