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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२० उर सू०२ धर्मास्तिकायर्यादिनामैकार्थकनामनि० ५१७ वस्तुजातस्याश्रयणात् भाजनमिति, 'अंतरिक्खेइ वा २१' अन्तरीक्षमिति वा अन्तो-मध्ये ईक्षा-दर्शनं यस्य तदन्तरीक्षमिति सर्वत्र व्यापकत्वात् , 'सामेई वार२' श्याममिति वा-श्यामवर्णत्वात्-श्यामतयैव दर्शनात् श्याममिति२२, 'उवासंतरेइ वा२३' अवकाशान्तरमिति वा-अवकाशरूपमन्तरं स्वरूपं यस्य तदवकाशान्तरमिति२२, 'अगमेइ वा २४' अगममिति वा गमनक्रियारहितं यत् वत् अगममिति, २४' 'फकिहेइ वा२५' स्फटिकमिति वा स्फटिकमिव अति स्वअतः, यहां रहने के कारण वे इसके द्वारा संरक्षित हैं ऐसा यह व्यु. त्पत्ति लभ्य अर्थ औपचारिक है। 'भायणेह २० वा' इसी निमित्त को लेकर इसका नाम भाजन भी है क्योंकि समस्त पदार्थजात इसी में आधेयरूप रहे हुए हैं । 'अंतरिक्खेह वा 'अन्तरीक्ष २१' भी इसका नाम है क्योंकि सर्वत्र व्यापक होने से इसका अन्त मध्य में ईक्षा दर्शन होता है 'सामेह २२ वा श्याम भी इसका एक पर्यायवाची शब्द है सो इसका कारण ऐला है कि यह देखनेवालों को श्यामवर्णवाला प्रतीत होता है वैसे तो अमूर्तिक होने से इसका कोई भी वर्ण नहीं है परलौकिक मान्यता के अनुसार श्याम ऐसा इसका नाम कहा गया ज्ञात होता हैं 'उवासंतरेइ वा २३' इसका स्वरूप अवकाशरूप है अतः अवकाशान्तर भी इसका दूसरा नाम है 'अगमेइ वा २४' लोक अलोक में सर्वत्र व्यापक होने से यह स्वयं गमनक्रिया से शून्य है अतः 'अगम' भी इसका नाम है 'फलिहेइ २५ वा' अतिस्वच्छ होने જીવાદિક પદાર્થ લોકાકાશમાં જ રહે છે. તેથી ત્યાં રહેવાના કારણે તેના દ્વારા ते सरक्षित छे. सवा मा व्युत्पत्ति य म भीपथरि छ.१८ 'भायणेह વા’ આ નિમિત્તને લઈને તેનું નામ ભાજન એ પ્રમાણે પણ છે. કેમ કે मा पहा समूडी मामा माघेय ३५ ५२ २७ता छ.२० 'अंतरिक्खेइ જા” અંતરીક્ષ એ પ્રમાણે પણ તેનું નામ છે. કેમ કે બધે જ વ્યાપક હોવાથી तेना मत मध्यम क्ष-शन थाय छे.२१ 'सामेइ वा' श्याम सई पर તેનું પર્યાયવાચી નામ છે. તેનું કારણ એ છે કે આ જેવાવાળાને શ્યામવર્ણ વાળું જણાય છે. સામાન્ય તે અમૂર્તિક હોવાથી તેને કેઈપણ વણ નથી. પરંતુ લૌકિક માન્યતાનુસાર શ્યામ એવું તેનું નામ કહેલું જણાય છે. २२ 'सवासंतरेइ वा तनु २१३५ अ श३५ छे. तेथी 'मशान्त शव ५ तेनु' मा नाम छ.२३ 'अंगमेइ वा' as मन मा मधेर વ્યાપક હેવાથી તે સ્વયં ગમન ક્રિયા વગરનું છે. તેથી અગમ એવું પણ तन नाम लिदेश वा साताशी
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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