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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०२ ०२ धर्मास्तिकायादिनामेकार्थक नामनि० ५०७ पन्नता' अनेकानि अभिवचनानि - पर्यायशब्दा धर्मास्तिकायस्य प्रज्ञप्तानि कथितानि । कानि तान्यनेकानि अभिवचनानि तत्राह - 'तं जहा ' तथथा - 'धम्मे वा' धर्म इति वा, जीवपुद्गलानां गतिपर्यायसहायकरूपेण धारणात् धर्म इति शब्द उपपदर्शनपरकः, वा शब्दो विकल्पार्थे 'धम्मस्थिकाer '' धर्मास्तिकाय इति वा तत्र धर्मः -पूर्वोक्तलक्षणकः स चासौ अस्तिकायथ-प्रदेशराशिरिति धर्मास्तिकायः धर्मात्मकमदेशराशिरित्यर्थः २ पाणाइवायवे रमणे वा' प्राणातिपात विरमणमिति वा अत्र धर्मशब्दश्चारित्रलक्षणकः स च प्राणातिपातचिरमणरूपः ततश्च धर्मशब्दसाधर्म्यादस्तिकायरूपस्यापि धर्मस्य प्राणातिपातविर+
'अणेगा अभिवयाणा पन्नता' हे गौतम । धर्मास्तिकाय के अभिधायक शब्द अनेक कहे गये हैं 'तं जहा' - जैसे- 'धम्मेह वा' यहां सर्वत्र वा शब्द विकल्प अर्थ में प्रयुक्त हुआ है जीव और पुलों को यह गतिरूप पर्याय में सहायक रूप से धारण करता है अतः इस अभिप्राय से इसे धर्म ऐसा कहा गया है अर्थात् इसका एक नाम 'धर्म' ऐसा कहा गया है 'घम्मे' में 'इति' शब्द उपप्रदर्शनपरक है 'धम्मस्थिकाइ वा ' यह पूर्वोक्तलक्षणवाला धर्म प्रदेशों की राशिरूप है अर्थात् असंख्यात प्रदेशी है तात्पर्य ऐसा है, कि यह प्रदेशराशि ऐसा है जो जीव और पुगलों को चलने में सहायक होती है अतः यह धर्मास्तिकाय ऐसा कहा गया है यह इसका द्वितीय नाम है । 'पाणावायवेरमणेह वा' यह इसका तीसरा नाम है क्योंकि धर्म यह शब्द 'चारित खलु धम्मो' के अनुसार चारित्रधर्मरूप है और चारित्र जो होता है वह प्राणातिपात
अभिधाय: - पर्यायवाचीश हो भने डेला छे, 'तंजहा' ते भा प्रभा 'धम्मे वा' मडियां मधे वा शब्द विल्य अर्थभां वयरायेल छे. व અને પુદ્ગલાને આ ધર્માસ્તિકાય ગતિ રૂપ પર્યાયમાં સહાયક રૂપે ધારણ કરે छे. तेथी ये मलिआयथी तेने धर्म मे प्रभा वामां भाव्यु' छे. 'धम्मेव वा' मे वाक्यमां इति शब्द उपप्रदर्शन ५२४ छे. 'धम्मेत्थिकाएइ वा' भा પૂર્વોક્ત લક્ષણવાળા ધર્મ પ્રદેશની રાશિ રૂપ છે. અર્થાત્ અસખ્યાત પ્રદેશવાળા છે, કહેવાનું તાત્પ એ છે કે-આ પ્રદેશરાશી એવી છે કે જે જીવ અને પુદ્ગલાને ચાલવામાં સહાય રૂપ હોય છે. તેથી તેને ધર્માસ્તિકાય એ પ્રમાણે
वामां आवे छे. या तेनुं जीनु' नाम
'पाणाइवाय वेरमणेइ वा' मा तेतुं त्रीभु नाम छे, भ है-धर्म मे शফ 'चारितं खलु धम्मो' मे ४थन प्रभा] यास्त्रि मे धर्भश्य है. मने यारित्र - होय