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sheet टीका श०२० उ०१ सू०१ होन्द्रियनामक प्रथमोद्देश निरूपणम् ४८७ बानाइ - ' एवं जहा वेई दियाणं' एवं यथा द्वीन्द्रियाणाम्, द्वीन्द्रियविषये यथा कथितं तथैव इहापि उत्तरं ज्ञातव्यं पञ्चेन्द्रियाः मत्ये काहाराः प्रत्येक परिणामाः प्रत्येकशरीरा इत्यादि, 'नवरं छल्लेस्साओ' नवरं पड्लेश्याः द्वीन्द्रियजीवापेक्षया पञ्चेन्द्रियजीवानामयं भेदः द्वीन्द्रियाणां तिस्रो लेश्याः पञ्चेन्द्रियाणां तु पडिति, 'दट्ठी तिथि - हावि' दृष्टय त्रिविधा अपि सम्यग्टष्टि मिध्यादृष्टिर्मिश्रदृष्टिरपीति । 'चत्तारि ' नाणा' चत्रारि ज्ञानानि मतिश्रुतावधिमनः पर्यवरूपाणि केवलज्ञानं तु अनिन्द्रिमैं प्रभु कहते हैं - ' एवं जहा वेई दियाणं' हे गौतम । द्वीन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में जैसा कहा गया है वैसा ही कथन इनके सम्बन्ध में भी जानना चाहिये अर्थात् प्रत्येक पञ्चेन्द्रिय जीव अलगर आहार करते हैं और अलग २ रूप से उसे परिणमाते हैं और अलग २ रूप में इनका शरीर रहता है - इत्यादि सब कथन द्वीन्द्रिय जीवों के समान है फिर भी 'नवरं बल्लेस्साओ' लेश्याओं आदि की अपेक्षा कथन में थोड़ी सी भिन्नता भी है द्वीन्द्रिय जीवों के लेश्याएं ३ कहीं गई हैं तब कि पश्चन्द्रिय जीवों के लेइयाएं ६ कही गई है 'दिट्ठी तिविहा वि' तथा द्वीन्द्रियों मैं सम्यग्दृष्टिपना और मिध्यादृष्टिपना कहा गया है मिश्रदृष्टिपना नहीं तब की यहां सम्यग्दृष्टिपना, मिथ्यदृष्टिपना और मिश्रदृष्टिपना कहा गया है 'चत्तारि नाणा' वहीं दो ज्ञान कहे गये हैं यहां मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यव चार ज्ञानभजना में कहे गये हैं केवलज्ञान अनिन्द्रिय जीवों के ही होता है इसलिये इन्द्रियवाले जीवों के वह नहीं
अलु अछे - ' एवं जहा बेइंदियाणं' हे गौतम | द्वीन्द्रिय भवाना संगंधमां જે પ્રમાણે કહેવામાં આવ્યુ છે, એજ રીતનુ' કથન આ વિષયમાં પ સમજવું. અર્થાત્ દરેક પચેન્દ્રિય જીવા અલગ અલગ આહાર કરે છે. અને જુદા જુદા રૂપે તેને પરિણમાવે છે. અને અલગ અલગ રૂપે તેમેના શરીર रहे छे. विगेरे मधु उथन मे द्रिय व प्रभावे छे. तोय 'नवरं छ लेस्साओ' सेश्या विगेरैनी अपेक्षाथी थोडी दुहाई पाशु पशु छे, मेहद्रिय वाजा જીવાને ત્રણ લેસ્યાએ કહી છે. અને પચેન્દ્રિય જીવેાને છ લેશ્યાઓ કહી છે, 'दिट्ठी तिविहा वि' तथा मे द्रिय वामां सभ्यद्दृष्टिपायु भने मिथ्यादृष्टिपाशु કહેલ છે. મિશ્રર્દષ્ટિપણુ કહ્યું નથી. અહિયાં સમ્યગ્દષ્ટિપણુ, મિથ્યાર્દષ્ટિપણુ, અને મિશ્રષ્ટિપણુ કહેલ છે અહિયાં મતિજ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાન, અધિજ્ઞાન અને મનઃપવજ્ઞાન એ પ્રમાણે ચાર જ્ઞાન કહ્યા છે, કેવળજ્ઞાન અનિન્દ્રિય-ઈ“દ્રિય વિનાના જીવાને જડૅાય છે, તેથી
'चत्तारि नाणा' त्यां मे ज्ञान उडेल छे भने