________________
मैन्द्रिका टीका श०१९ उ०१० सू०१ वानेव्यन्तराणामाहारकरण नि० ४६९ कापोतिकलेश्या असंख्येयगुणाः, नीललेश्या विशेषाधिकाः, कृष्णलेश्या विशेषा धिकाः कियत्पर्यन्तं द्वीपकुमारप्रकरणं वक्तव्यम् तत्राह - जाव अप्पड़ियत्ति' अनेन द्वीपकुमारप्रकरणस्य अन्तिमं सूत्रं सूचितम् तथाहि - 'एएसि णं भंते ! वाणमंतराणं कण्हलेस्साणं जाब तेउलेस्साण य कयरे कयरेहिंतो अप्पडिया वा महिडिया वा गोयमा ! कण्डलेस्सेहिंतो नोललेस्सा महिडिया जान सन्वमहिड्रिया तेउलेस्सा एवं तेउलेस्सेहिंतो कावोयलेस्सा अपडिया, कावोयलेस्सेर्हितो नीकलेस्सा अपडिया, नीलले सेहिंतो कव्हलेस्सा अप्पडिया' इति एतेषां खल भदन्त ! वानव्यन्तराणां कृष्णलेश्यानां यावत्तेजोलेश्यानां च कतरे कतरेभ्यो
अपेक्षा कापोपितक लेश्यावाले वानव्यन्तर असंख्यातगुणित हैं इनकी अपेक्षा नीललेश्यावाले विशेषाधिक हैं एवं कृष्णलेइयावाले विशेषाधिक हैं। यह दीपकुमार प्रकरण यहां कहां तक का ग्रहण करना चाहिये तो इसके लिये 'जाब अध्यड्डपत्ति' ऐसा कहा गया है कि इस पद तक का पाठ यहां पर ग्रहण करना इससे आगे का नहीं। इससे द्वीपकुमार प्रकरण का यह अन्तिम सूत्र है ऐसा सूचित किया गया है वह पाठ इस प्रकार से है- 'एएसिणं भंते । वागमतराणं कण्हलेस्साणं जाव तेउ
साणं करे करेहिंतो अप्यडिया वा महिडिया वा ? गोयमा । कण्हंलेस्से हिंतो नीललेस्सा महिड्डिया जाय सम्बहिड्डिया तेउलेस्सा एवं उस्सेहिंनो कावोपलेला अप्पाडिया काबोधले सेहिंतो नीललेस्सा अपड़िया नीलसेहितो कण्हलेस्सा अपडिया' इस पाठ का अर्थ इस प्रकार से हैं- हे भदन्त ! कृष्णलेश्यावाले यावत्
વાળા વાનન્યન્તર અસંખ્યાતગણા છે. તેની અપેક્ષાએ નીલલેશ્યાવાળા વિશેષા ધિક છે, અને કૃષ્ણલેશ્યાવાળા વિશેષાધિક છે. આ દ્વીપકુમાર પ્રકરણુ અહિયાં
सुधीनुं श्रश्वानुं छु छे ते भाई सूत्रार आहे हे — 'जाव अप्पइढियत्ति' मा यह सुधीना पाठ अडियां ग्रहण ४२वा लेहो. तेनी આગળના નહી.. આનાથી દ્વીપકુમાર પ્રકરણનું આ છેલ્લુ સૂત્ર છે. એમ सूथित ' हे 'एएसि णं भंते! बाणमंतराणं कण्हलेस्साणं जाव वेउलेस्खाणं करे कयरेद्दितो अपढिया वा महिइढिया वा गोयमा ! कण्णलेरसेहिंतो नीललेस्सा महिइढिया जाव सव्वमहिइढिया तेउलेस्सा एवं तेउलेरसेहिंतो कावायलेखा अप्पढिया, कावोयलेरसे हि तो नीललेश्सा अध्पडूढिया नीललेरसे हितो कण्हलेखा अप्पढिया' या पाउने अर्थ या प्रभा छे. हे भगवन् पशु લેશ્વાવાળા ચાવતુ તે વેશ્યાવાળા આ વાનન્યન્તરામાં કેણુ કાની અપેક્ષાએ