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________________ प्रमेयंचन्द्रिका टीका श०१९ उ०८ सू०१ जीवनिवृत्तिनिरूपणम् 'एगा हुंडसंठाणनिवित्ती पन्नत्ता' एका हुण्डसंस्थाननिवृत्तिः प्रज्ञप्ता नारकजीवानां हुण्डसंस्थानं भवतीत्युत्तरम् 'असुरकुमारणं पुच्छा' असुरकुमाराणां पृच्छा हे भदन्त ! असुरकुमाराणां कीदृशी संस्थाननिर्वृत्तिर्भवती ? ति प्रश्नः, भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'एगा समचउरंससंठाणनिवत्ती पन्नत्ता' एका समचतुरस्रसंस्थाननिवृत्तिः प्रज्ञप्ता, असुरकुमाराणां कीशी संस्थाननितिरिति प्रश्नः, एका समचतुरस्रसंस्थाननिर्वृत्तिरित्युत्तरम् , 'एवं जाव थणियकुमाराणे' एवं यावत् स्तनितकुमाराणाम् यथा असुरकुमाराणाम् एकं समचतुरस्त्र. संस्थानम् तथैव यावत् स्तनितकुमाराणामपि एकमेव समचतुरस्त्र संस्थानमिति । 'पुढवीकाइयाणं पुच्छा' पृथिवीकायिकानां पृच्छा हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीवानां कीदृशी संस्थाननिर्वृत्तिर्भवतीति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'एगामपूरचंदसंठाणनित्यत्ती पन्नत्ता' एका ममरचन्द्रसंस्थान उत्तर में प्रयुकहते हैं-'गोयमा!' हे गौतम ! 'एगा हुंड ठाणनिव्वत्ती पण्णत्ता' नारक जीवों को एक हुंडकसंस्थान नित्ति होती है 'असुरकुमारणं पुच्छा' हे भदन्त ! अस्तुरकुमारों के कैसी संस्थाननिवृत्ति होती है? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा! एगा समचउरंससंठाणनिवत्ती पन्नत्ता' हे गौतम! असुरकुमारों को एक समचतुरस्त्र संस्थाननिवृत्ति होती है एवं जाव थपियकुमाराण' इसी प्रकार से यावत् स्तनितकुमारों के भी एक समचतुत्र संस्थान की निर्वृत्ति होती है 'पुढवीकाइयाणं पुच्छा' हे भदन्त ! पृथिवीकाधिक जीवों को कैसी संस्थाननिवृत्ति होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-गोषमा ! एगा मसूरचंदसंठाणनिव्वत्ती' हे गौतम ! पृथिवीकाधिक जीवों को संस्थान की निवृत्ति जैसे निति य छ १ तना उत्तरमा प्रभु है-'गोयमा!' गीतम ! 'एगा इंडसठाणनिबत्ती पण्णचा' ना२४ लाने में संस्थान निवृत्त हाय. 'असुकुमाराणं पुच्छा' लगवन असुरभारीने वासस्थान निवृत्ति जय छ ? मा प्रशन उत्तरमा प्रभु ४३ छे 3-'गोयमा! एगा समचउरंससंठाणनिव्यत्ती पण्णत्ता' गौतम! असुरशुभाशन में सभयतुरन सथान निवृत्ति डाय छे. 'एवं जाव थणियकुमाराण' मे प्रमाणे यावत् स्तनितभार सुधिमा माथे सभयतुरन सथानी निवृत्ति डाय छे. 'पुढवीकाइयाणं पुच्छा' हे ભગવદ્ પૃથ્વીકાયિક જીને કેવી સંસ્થાન નિર્વત્તિ હોય છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ ४ छ -'गोयमा एगा मसूरचंदसंठाणनिव्वत्ती' गौतम ! पृथ्वी विवाद મસૂરની દાળના આકારની અથવા ચંદ્રમાના આકાર જેવી ગાળ સંસ્થાન નિવૃત્તિ
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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