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________________ ४३६ भगवतीसूत्र संस्थाननित्तिः संस्थीयते-सम्यकस्थितो भवति येन तत् संस्थानम् शरीराणामा कारविशेषः, तस्य निर्वृत्तिः-निष्पत्तिः सा कतिप्रकारा प्रज्ञप्ता, संस्थाननिवृत्तयः कति भवन्ति ? इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'छबिहा संठाणनिव्वती पन्नत्ता' पइविधा-पट्मकारा संस्थाननिर्वृत्तिः प्रज्ञप्ता संख्याभेदमेव दर्शयति 'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तथा 'समचउरंससंठाणनिन्चत्ती'. समचतुरस्रसंस्थाननित्तिा , 'जाव हुंडसंठायानिधची' यावद् हुण्डसंस्थाननिवृत्तिः, अत्र यावत् पदेन न्यग्रोधपरिमंडल १ सादिकं २ वामनं ३ कुन्जम् ४, इत्येतेषां चतुर्णा संस्थानानां ग्रहणं भवति संस्थानद्वयस्य सूत्रे एव कथितत्वाद , तत्र कस्य जीवस्य कीदृशी संस्थाननिवृत्तिर्भवतीति दर्शयितुमाह'नेरइयाण' इत्यादि, 'नेरइयाणं पुच्छ।' नैरयिकाणां पृच्छा हे भदन्त ! नारकजीवानां कीडशी संस्थाननिवृत्तिर्भवतीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम । प्रकार से स्थित होता है ऐसे उस संस्थानकी शरीरों के आकार विशे की निवृत्ति कितने प्रकार की होती है ? अर्थात् संस्थान निवृत्तियां कितनी होती हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में कहते हैं-'गोयमा ! छविहा संठाणनिबत्ती पण्णत्ता' हे गौतम ! संस्थाननिवृत्ति छ प्रकार की होती है जो नाम से इस प्रकार से है-'लमचउरंससंठाणनिन्धत्ती जाय हुंडसंठाणनिव्यत्ति' समचतुरस्रसंस्थाननिति यावत् हुंडकसंस्थाननिवृत्ति यहाँ यावत्पद से 'न्यग्रोधपरिमंडल, सादिक वामन और कुब्जक' इन ४ संस्थानों का ग्रहण हुआ है, दो संस्थानों को नाम सूत्र में ही बताया गया है कि जीव के कैसे संस्थान निवृत्ति होती है इस बात को जानने के लिये गौतम प्रभु से 'नेरयाणं पुच्छा' हे भदन्त ! नारक जीवों के कैसी संस्थानननित्ति होती है ? इस प्रकार से पूछते हैंજેનાથી જીવ સારી રીતે સ્થિર થઈ શકે એવા તે સંસ્થાનોની અર્થાત્ શરીરના આકાર વિશેષની નિર્વત્તિ કેટલા પ્રકારની હોય છે એટલે કે નિવૃત્તિ सा ४१२नी लीय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४१ छ -'गोयमा ! छविहा सठाणनिव्वत्ती पण्णत्ता' गौतम! सस्थाननिवृत्ति छ अारनी अपामा मावी छे. तेना नाम 'समचउरंससंठाणनिव्वत्ती जाव हुडसठाणनिव्वत्ती' सभयतुरस याननिवृत्ति, न्याय परिभ सस्थाननितिर સાદિક સંસ્થાનનિવૃત્તિ ૩ વામન સંસ્થાનનિવૃતિ ૪, મુજસંસ્થાન નિવૃત્તિ ૫ અને હુડક સંસ્થાનનિવૃત્તિ ૬. હવે ક્યા જીવને કેવી સંસ્થાન નિવૃત્તિ હોય છે, તે વાત સમજવા માટે ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને એવું પૂછે છે કે-હે ભગવન નારક છેને કેવી સંસ્થાન
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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