SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૭૨. प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१० सू०५ वस्तुतत्वनिरूपणम् गौतमः हे भदन्त ! इत्येवं रूपेण भगवन्तं संबोध्य भगवान् गौतमः 'समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ' श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति 'बंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी' वन्दित्वा नमस्यित्वा एवम्-वक्ष्यमाण वचनम् अवादीत् उक्तवान् किमुक्तवान् तत्राह-'पभू णं भंते ! प्रभु!-समर्थः खलु हे भदन्त ! 'सोमिले माहणे' सोमिलो ब्राह्मणः 'देवाणुपियाणं अंतिए मुंडो भवित्ता०' देवा. नुप्रियाणामन्ति के मुण्डो भूत्वा अगारान् अनगारितां प्रव्रजितुम् अत्रातिदेशमाह'जहेव संखे तहेत्र निरवसेस जाव अंतं काहिइ यथैवान द्वादशे शते प्रथमोद्देशके शंखः तथैव निरवशेष यावद् अन्तं करिष्यति हे भदन्त ! भवदन्तिके दीक्षामादाय प्रजिष्यति सोमिलः किमितिगौतमप्रश्ने शंखश्रावकदृष्टान्तो वाच्यः करते हुए 'लमणं भगवं महावीर वंदह नमंसह श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की नमस्कार किया 'बदित्ता नमंसित्ता वन्दना नमस्कार करके फिर उन्होंने प्रभु से 'एवं बयाली' ऐसा पूछा 'पभू णं भंते । सोमिले मारणे' हे भदन्त ! लोमिल ब्राह्मण क्या 'देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता०' आप देवानुप्रिय के पाल मुडित होकर अगारावस्था से अनगारास्था धारण करने के लिये क्या समर्थ है 'जहेव संखे' हे गौतम ! १२ वें शतक के प्रथम उद्देशक शास के विषय में जैसाकथन किया गया है वही सच कयन यहां पर भी इसके विषय में कर लेना चाहिये अर्थात् जम गौतम ने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया कि हे भदन्त ! आपके पास क्या सोमिल भागवती दीक्षा धारण करेगा ? तो प्रभु ने उनसे कहा हे गौतम ! इस विषय में यहाँ पर शत श्रावक का दृष्टान्त कह लेना चाहिये जिस प्रकार से शः श्रावक ने श्रावकधर्मका पालन महावीरन बना ४री नमः४।२ ४ा, 'वंदित्ता नमंसित्ता' ना नभ२४१२ शन ते पछी तमा प्रभुने 'एवं वयासी' 4 प्रमाणे पूछयु'. 'पभूणं भंते ! सोमिले माहणे' है भगवन् सोभित माझए 'देवाणुपियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता०' मा५ हेवानुप्रियनी पासे दीक्षा स्वारीन मा२ मवस्थाथी सनगार सपथा घार री शशे ? 'जहेव संखे०' है गौतम १२ मारमा શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં શંખના વિષયમાં જે પ્રમાણે કથન કરવામાં આવ્યું છે. તે સઘળું કથન અહિયાં આ સેમિલના વિષયમાં સમજવું અર્થાત જ્યારે ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને એવો પ્રશ્ન કર્યો કે-હે ભગવન આપની પાસે સેમિલ બ્રાહ્મણ દીક્ષા ધારણ કરશે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુએ કહ્યું કે-હે ગૌતમ! આ વિષયમાં અહિયાં શંખ શ્રાવકનું દૃષ્ટાંત સમજવું શંખ શ્રાવક જે રીતે શ્રાવક भ० ३५
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy