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प्रमेयवन्द्रिका टीका शं०१८ उं०८ सू०२ छं स्थानां द्विप्रदेशादिस्कंधज्ञाननि० १७९ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी। छउमत्थे णं भंते ! मणूसे परमाणुपोग्गलं किं जाणइ पालइ उदाहु न जाणइ न पासइ ? गोयमा अत्थेगइए जाणइ न पासइ अत्थेगइए न जाणइ नं पासइ । छउमत्थे णं भंते! मणूसे दुपएसियं खधं किं जाणइ पासइ ? एवं चेव एवं जाव असंखेजपएसियं । छउमत्थे णं भंते! मणूसे अणंतपएसियं खंधं किं पुच्छा गोयमा! अस्थेगइए जाणइ पासइ१, अत्थेगइए जाणइ न पासइ२, अत्थेगइए न जाणइ पासइ३, अत्थेगइए न जाणइ न पासइ । आहो. हिए णं मंते ! मगुस्से परमाणुपोग्गलं. जहा छउमत्थे एवं आहोहिए वि जाव अणंतपएसियं। परमाहोहिए णं भंते ! मणूसे परमाणुपोग्गलं जं समयं जाणइ तं समयं पासइ जं समयं पासइ तं समयं जाणइ ?। णो इणद्वे समढे ।से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ परमाहोहिए णं मणूसे परमाणुपोग्गलं जं समयं जाणइ नो तं समयं पासइ जं समयं पासइ नो तं समयं जाणइ ? गोथमा ! सागारे से नाणे भवइ अणागारे ले दसणे भवइ से तेणटेणं जाब नो तं समयं जाणइ एवं जाव अणंत. पएसियं । केवली णं भंते ! मणुस्से परमाणुपोग्गलं. जहा परमाहोहिए तहा केवली वि, जाव अणंतपएसियं । सेवं भंते! सेवं भंते ! ति ॥सू०३॥
अट्ठारससए अट्ठमो उद्देसओ समत्तो।