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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ ३०८ ६०२ गमनमाश्रित्य परतीर्थिकमत निरूपणम् १६७
न त्रिकरण त्रियोगेन 'असं जया' असंयताः - संयमरहिताः 'जाब एगंतबालाया यावि भवह' यावत् एकान्तवालाच अपि भवथ । अत्र यावत्पदेन अविरया अप्प डिहय चिक्खायपानकम्मा सकिरिया असंबुडा एगंतदंडा एगंतसुत्ता' इत्यन्तस्य "ग्रहणं भवति अविरता अप्रतिहताऽपत्याख्यात्तपापकर्माणः सक्रिया असंवृता एकान्तदण्डा एकान्तसुप्ताः । तत्र अविरताः अतीतकालिकपापाज्जुगुप्सापूर्वकम् भविष्यति च संवर पूर्वकमुपरताः, विरता- निवृत्ताः, न विरता अविरताः, अतएव अप्रतिहताऽप्रत्याख्यात पापकर्माणः- तत्र प्रतिहतं - वर्तमानकाले स्थित्यनुभागहासेन नाशितम्, प्रत्याख्यातम् - पूर्वकृतातिचारनिन्दया भविष्यत्यकरणेन निरारण त्रियोग से संग्रम रहित है । इस कारण 'जाव एगं०' यावत् एकान्त बाल भी हैं। यहां यावत्पद से 'अदिरमा अपड़ियापच्चवखाय पाचकम्मा सकिरिया असंबुडा एगंतदंडा एनंतसुत्ता' यहां तक का पाठ गृहीत हुआ है। जो अतीतकालिक पारों से जुगुप्सा पूर्वक एवं भवि यत्कालिन पापों से संवर पूर्वक उपरत होते हैं वे विरत हैं और जो ऐसे नहीं हैं वे अविरत हैं जो वर्तमानकालिक पापकर्म को स्थिति अनुभाग के हास से नष्ट कर देते हैं। तथा पूर्वकृत अतिचारों की निन्दा से एवं भविष्यत् में इन्हें नहीं करने के नियम से जो पापकर्म को नष्ट कर देते हैं, वे प्रतिहतप्रत्याख्यातपापकर्मा जीव कहे गये हैं तथा जो ऐसे नहीं होते हैं अर्थात् इनसे जो भिन्न हैं वे अप्रतिहत अप्रस्याख्यात पापकर्माजीव हैं । कायिकी आदि क्रिया से युक्त जो होते
अज्जो तिविह” हे मार्य साथ नयु १२षु अनेत्र योगोथी संयम विनाना छे! मेथी "जाब एगंत." असे यावत् अन्त मास पशु है। मडियां यावत्पथी "अविरया अप्पडियपच्चरखाय पावकम्मा किरिया असंवुडा एगंतदंडा एगंतसुत्ता" अहि सुधीना या ग्रहण थयो छे.
જે ભૂતકાળના પાપાની નિંદાપૂર્વક અને ભવિષ્યકાળના પાપેાથી સવરપૂર્વક ઉપરત–નિવૃત્ત થાય છે, તેએ વિરત કહેવાય છે, અને તે પ્રકારના ન હૈાય તે અવિરત કહેવાય છે. જેએ વર્તમાન કાળના પાપ કર્મોન સ્થિતિ અને અનુભાગના હાસથી નાશ કરે છે, તેમ જ પહેલાં કરેલા અતિચારીની નિદાપૂર્વક તેમજ ભવિષ્યમાં તે પાપકમ ન કરવાના નિયમથી જેએ પાપ કર્મોના નાશ કરે છે, તે પ્રતિહત પ્રત્યાખ્યાત પાપકર્માં જીવ કહેવાય छे. तथा तेवा ? होता नथी. अर्थात् अ. अ. पायार्भा लवथी ने नूहा छे તે અપ્રતિહત અપ્રત્યાખ્યાત પાપકમાં જીવ કહેવાય છે, કાયિકી વિગેરે ક્રિયાએ