________________
की प्रमेयचन्द्रिका टीका शे०१८ उं०७ सू०३ मद्रुकश्रमणोपासकचरितनिरूपणम् १३१
तुः पश्नान् पृच्छति, अत्र यावत्पदेन धर्मकथादि श्रवणादिकं सर्वं ज्ञातव्यम् , भगवतो मुखात देशनां श्रुत्वा हृदि अवधार्य च अतिशयेन प्रसन्नचित्तो भूत्वा
नान् अपृच्छदितिभावः । 'पसिगाई पुच्छिता अट्ठाई परियायइ' प्रश्नान् पृष्ट्वा अर्थान् पर्याददाति परियाइत्ता' पर्यादाय 'उहाए उद्देई' उत्थया उत्तिष्ठति 'उठाए उहित्ता' उत्थया उत्थाय 'समणं भगवं महावीर वंदइ नमंसई' श्रमणं भगवन्तं महावीर वन्दते नमस्यति 'वदित्ता नमंसित्ता जाव पडिगए' वन्दित्वा नमस्यित्वा यावत्मविगतः अत्र यावत्पदात् मट्ठकः श्रमणोपासका यामेव दिशमाश्रित्य मादुभूतस्तामेव दिशं प्रतिगतः, इति संग्राह्यम् । 'मंते ! ति भगवं गोयमे' भदन्त ! इति एवं रूपेण भगवन्त संवोध्य भगवान् गौतमः 'समणं भगवं महावीरं वंदह नमंसई' श्रमण भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी' गई है। 'पसिणाई पुच्छित्ता अट्ठाई परियायइ' प्रश्नों को पूछकर फिर उसने अर्थ को ग्रहण किया 'परियाइत्ता उठाए उहे' अर्थ को ग्रहण करके फिर वह अपने आप उठा-उठाए उहित्ता' अपने आप उठकर 'समणं भगवं महावीरं वंदह नमसई उसने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की और नमस्कार किया 'वंदित्ता नमसित्ता' वन्दना नमस्कोर कर 'जाव पडिगए' फिर वह जहां से आया था वहीं पर चला गया यहां यावत्पद से 'यामेवदिशमाश्रित्य प्रादुर्भूतः तामेव दिश प्रतिगत:' इस पाठ का ग्रहण हुआ है । 'भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बंदा नमंसह हे भदन्त ! ऐसा कहकर भगवान् गौतमने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की नमस्कार किया। 'वंदित्ता नमसित्ता' वन्दना नमस्कार कर 'एवं वयासी' फिर
मा सूत्र ४ ४९ छ. 'पसिणाई पुच्छित्ता अढाई परियायई" प्रता पछी पछी तेरे मछे अरु ४ा--"परियाइत्ता उहाए उठेई" मन ग्रह ४२a a पातानी उत्थान शतीथी 8:21. "उटाए उद्वित्ता" पातानी स्थान शतिथी हीन ते "समण भगवं महावीरं वंदइ नमसइ" श्रमश भगवान महावीर साभान ना ४ नमः४२ ४ा. “वंदित्ता नमंसित्ता" बहन नभा२ ४शन "जाव पडिगए" त म न्याथी पाये ते त्यांथी पाछ। गया. मडिया यात्५:यी “यामेवदिशमाश्रित्य प्रादुर्भूतः तामेव दिश प्रति गत." मा पाइने सब थये। छ. "भंते । त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ', ती गया पछी उ मापन मे प्रमाणे डीने ભગવાન ગૌતમસ્વામીએ શ્રમણ ભગવાન મહાવીર સ્વામીને વંદના કરી नभसार र्या 'वंदित्ता नमंसिता' बना नभर ४शन एवं पयासी"