________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०७ सू०३ मद्रुकश्रमणोपासकचरितनिरूपणम् १११ नातिदरे नातिसमीपे उचितस्थाने 'बहवे अन्न उत्थिया परिवसंति बहवोऽन्ययूथिकाः परिवसन्ति, के ते अन्ययूथिका बहवो वसन्ति ? तत्राह-'तं जहा' इत्यादि । 'तं जहा' तद्यया 'कालोदायी सेलोदायी' कालोदायिनामकाः शैलोदायिनामकाश्च ‘एवं जहा सत्तमसए अन्नउत्थिय उद्देसए' एवं यथा सप्तमशतके दशमेऽन्ययथिकोद्देशके 'जाव से कहमेयं मन्ने एवं' यावत् कथमेतत् मन्ये एवमित्यन्तः सप्तमशतकीयान्ययूथिकमस्ताब उपवर्णनीयः ‘एवं जहा सत्तमसए' इत्यादिना यत् सचितं तदिह संक्षेपतः पदश्यते, तथाहि-कालोदायी शैलोदायी सेवालोदायी उदयः नामोदयः नर्मोदयः अन्यपालका, शैलपालका, शंखपालकः, सुहस्ती माथापतिरिति नामका वहवोऽन्ययूथिकाः परिवसन्तिस्म गुणशिलचैत्यस्य समीपदेशे तेषामन्ययुथिकानां कदाचित् एकत्र संहितानां परस्परं 'अदूर सामंते' न अधिक पास और न अधिक दूर ऐसे उचित स्थान पर 'बहवे अन्ननथिया परिवसंति' अनेक अन्य तीर्थिकजन रहते थे। उनमें 'तं जहा-कालोदायी सेलोदायी' किसी का नाम कालोदायी था किसी का नाम शैलोदायी था । 'एवं जहा सत्तमसए अन्नउत्थिय उद्देसए' इत्यादि यह सब वर्णन पहिले सप्तम शतक के दशवें उद्देशक में किया गया है, और यह वर्णन वहां 'जाव से कहमेयं मन्ने' इस पाठ तक है यही बात यहां संक्षेप से प्रदर्शित की जाती है जो वहां अनेक अन्यतीर्थिकजन रहते थे उनमें से कितनेक के नाम इस प्रकार से हैं-कालोदायी, शैलोदायी, सेवालोदायी, उदय नमोंदय अन्यपालक, शैलपालक, शंखपालक सुहस्ती और गाथापति आदि गुणशिलक चैत्य के समीप के प्रदेश में बसे हुए उन अन्यतीर्थिकों की अधिः पास नही मे सथित स्थान ५२ "बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति" भने अन्यतार्थि न २डेता ता. "तं जहा-कालोदायी, सेलोदायी" भां
Usd नाम या तुमने नाम शैोहाया तु. “एवं जहा सत्तमसए अन्नउत्थिय उद्देसए" त्यादि तमाम प न पसi सातमा शतना सभा देशामा ४२वामा मा०यु छे. भन ते पन त्यां "जाव से कहमेवं मन्ने" भा 48 सुधा छे. मे पात मडिया सोपथी मतावामा આવે છે. તે આ પ્રમાણે છે–ત્યાં અનેક અન્ય મતવાદીઓ રહેતા હતા. તેમાંના કેટલાકનું નામ-કાલેદાયી શેલેદાયી, સેવાદાયી. ઉદય, નદય, અન્યપાલક શૈલપાલક, શંખપાલક સુસ્તી અને ગાથા૫તી વિગેરે ગુણ શિલક ચિત્યના નજીકના પ્રદેશમાં વસેલા. તે અન્યતીથિકે જ્યારે પરસ્પર