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भगवतीसत्रे वक्तव्यम् , फियत् पर्यन्तं पूर्ववदेव वक्तव्यम् तबाह-'जाव नामगं सावेत्ता पज्जु‘वासई' यावत् नाम श्रावयित्वा पर्युपास्ते, स्वकीयं नाम श्रावयित्वा कथयित्वा हे मदन ! अहं शको देवेन्द्रो देवराजस्त्वां वन्दे नमस्शमीत्यादि, 'धम्मकहा जाव परिसो पडि गया' धर्म था यावत् परिपत् प्रतिगता,परिपत् समागता तत्र धर्मकथा - भगवता कथिता, धर्म कथा श्रुत्वा परिपर पति गता। 'तए णं से सक्के देवि देवरायाः ततः खलु स शक्रो देवेन्द्रो देवराजः 'समणस्स भगाओ महावीरस्स अंतियं' श्रमणस्य भगस्तो हारस्पांतिके समीपे 'धम्म सोच्ना' धर्म श्रुत्वा 'निसम्म' निशम्य हृध धार्य '
हट' हृष्टपुटः 'सभणं भगवं महावीर' श्रमणं भगचन्तं महागीरम् 'बहइ ननं मई' बन्ददे ननस्पति, वंदित्ता नमंसित्ता' वन्दित्वा नसस्थित्वा 'एवं क्यासी' एम् वक्ष्यमानपकारेणावादीत-कविहे णं भंते ऐसाजानना चाहिये। 'जाव नामगं सावेत्ता पमुबासह' और यह वर्णन यहाँ हे भदन्त में देवेन्द्र देवराज शक्र आपको नमस्कार करता हूं 'यहां तक का ग्रहण हुआ ऐसा समझना चाहिये। 'धम्म कहा जाव परिसा पडिगया' परिषदा आई, श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकश कही, वह परिषदो धर्मकथा सुनकर विसर्जित हो गई। 'तए णं से सक्के देविंदे देवरायो' इसके बाद देवेन्द्र देशराज शक ने 'समणस्स भगवओ महावीरस्स श्रमण भगवान महावीर के पास धम्म सोच्चा धर्म का उपदेश सुनकर 'निसम्म' और उसे दय में धारण कर हतु(०' हष्ट तुष्ट चित्त होते हुए 'लमण भगवं महावीरें' श्रमण भगवान महावीर को 'चंदइ नमंसह चन्दनो की नमस्कार किया, 'वंदित्ता नसंहिता' वन्दना नमस्कारकर फिर उसने उनसे इस प्रकार पूछा 'काविहेणं भंते ! उग्गहे वन शान भने शनु सरभु छ तम सभ तु. “जाव नामग सावेत्ता पज्जुवासइ" भने मा पर्थन है भगवन् !हेन्द्र शर मापने नभा२ ४३ छु'. त्या सुधी ४५ ४२वातुं छे तम सभ "धम्मकहा जाव परिसा पडिगया" परिषद भावी श्रमाय सवान महावीरे धर्मया ही परीष धर्मथा सामणीने पyalsd पाछी ग. "तएण से सक्के देवि देवराया" a पछी हेवेन्द्र देव श "समणस्स भगवओ महावीरस्स" श्रम सगवान महावीर पासे "धम्म सोच्चा" भना पशि खisीन “निसम्म" २ तर यम धारण शन "हद्वतु?" हट तुष्ट चित्तपाणा ७२ “समणं भगव' महावीर" श्रम भगवान महावीरनी “वंदइ नमसइ" ना ४री नभ२१२ ४ा-" वंदित्ता नमंसित्ता" पन्ना नभ७२ री तेथे तेभने २मा प्रभाये पूछ\