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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १६ उ० २ सू०१ जीवानां जराशोकादिनिरूपणम् ५१ योविचारो विभागशो यत् भगवता प्रतिपादितः स तथैवेत्यहं मन्ये आप्तवाक्यस्य सत्यत्वाद इत्युक्त्वा गौतमो भगवन्तं वन्दित्वा नमस्थित्वा पर्युपास्ते ॥ खू० १॥ पूर्व देवानां जराशोकौ भवत इति मोक्तम् , अथ तेपामेव देवानां विशेषस्य शक्रस्य वक्तव्यतामभिधातुमाह-'तेणं कालेणं' इत्यादि। मूलम्-तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविदे देवराया वजापाणी पुरंदरे जाव मुंजमाणे विहरइ, इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवे दीवे विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे आभोएमाणे, पासइ समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे एवं जहा ईसाणे तइयसए तहेव सको वि नवरं आमिओगे, जो सदावेइ, पायताणियाहिबईहरी, सुघोसा घंटा, पालओ विमाणकारी, पालगं विमाणं, उत्तरिल्ले निजाणमग्गे दाहिणपुरस्थिमे रइगरपवए सेसं तं चेव, जाव नामगं सावेत्ता पज्जुवासइ। धस्मकहा जाव परिला पडिगया। तए णं से सके देविंद देवराया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धस्मं सोचा निसरूम हतुट० समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-काविहेणं भंते उग्गहे पण्णते, सका पंचविहे उग्गहे आपका यह कथन सर्वथा सत्य है-अर्थात् आपने जो सामान्य जीय और विशेष जीवों के विषय में जरा संबन्धी एवं शोक सम्बन्धी विचार विभागशः प्रतिपादित किया है वह ऐसा ही है ऐला ही है ऐसा मैं मानता हूं क्योंकि आप्त के वाक्य सत्य होते हैं । ऐसा कहकर गौतमने भगवान् को वंदना की नमस्कार किया । बन्दना नमरकार कर फिर वे उनकी पर्युपासना में लग गये। सू० १ ।। અને વિશેષ આના વિષયમાં જરા સંબંધી અને શક સંબંધી વિચાર પ્રગટ કર્યો છે. તે તેમજ છે એમ કહીને ગૌતમસ્વામીએ ભગવાનને વંદના કરી નમસ્કાર કર્યા વંદનાનમસ્કાર કરીને પછી તેઓ પિતાના સ્થાને વિરાજમાન થઈ ગયા. સૂના
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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