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भगवतीसूत्रे लेण्याद्वारे-'सलेस्सो जाव सुकलेस्सो जहा आहारओ' सलेश्यो यावच्छुक्ललेश्यश्च यथा आहारका कदाचिच्चरमः कदाचिदचरम स्तथा लेश्यावान् यावच्छुक्ललेश्यावान् कदाचिच्चरमः कदाचिदचरमो भवति, तत्र यो मोक्ष यास्यति स सलेश्यश्चरमा, यो न मोक्ष यास्यवि स सलेश्योऽचरमो भवति, अत्र यावत्पदेन कृष्णलेश्यात आरभ्य पालेश्यान्तस्य ग्रहणं भवति, लेश्या कृष्णनीलकापोतादिरूपा विधते यस्य स सलेश्यः, एवं कृष्णा लेश्या विद्यते यस्य स कृष्णलेश्या, एवं नीलकापोततः पद्मशुक्ललेश्योऽपि । 'नवर जस्स जा अत्यि' नवरं यस्य या लेश्या अस्ति यस्य जीवस्य कृष्णादिरूपा लेश्या विद्यते तस्यैव जीवविशेपस्य तामेव लेश्याम् अन्तर्भाव्यैव स्थाच्चरमत्वं स्यादचरमत्वं वेध्यमिति । 'अलेस्सो
लेश्याद्वारमें--'सलेस्सो जाय सुकलेस्तो जहा आहारओ' लेश्यासहित जाच यावत् शुक्ल लेश्या सहित जाव आहारक के जैसा कदा. चित् चरमहोता है और कदाचित् अचरम होता है। इनमें जो मोक्ष नहीं जावेगा वह सलेश्य जीव अचरम होता है, और जो मोक्ष जावेगा वह चरम होता है । यहाँ यावत् पदले 'कृष्णलेश्या से लेकर पद्मलेश्यान्त तक का ग्रहण हुआ है। कृष्णनीलकापोत आदिरूप लेश्याएँ जिसके मौजूद हैं वह सलेश्य जीव है। इनमें कृष्णलेश्या जिस जीव को है वह कृष्णलेश्य जीव है। इसी प्रकार से नील, कापोत, तेज, पद्म, और शुक्ल इन लेश्यावाले जीव भी जानना चाहिये। 'नवरं जस्स जा अत्थि' जो कृष्णादिरूपलेश्था जिस जीव को हो इस जीव की उसी लेश्या को लेकर उस जीव में चरमता अचमता का विचार करना चाहिये।
५ वेश्यावा२-'सलेस्से जाव सुकलेस्सो जहा आहारओ' लेश्यावाणी 4 થાવત્ શુકલ લેશ્યાવાળો જીવ આહારક પ્રમાણે કદાચિત ચરમ થાય છે, અને કેઈવાર અચરમ થાય છે. તેમાં જેઓ મોક્ષગતિ પામતા નથી તેવા સલેશ્યજીવ અચરમ હોય છે. અને જેઓ મોક્ષગતિએ જાય છે. તેઓ ચરમ હિોય છે. અહિં યાવત્પદથી કૃષ્ણલેશ્યાથી આરંભીને પલેશ્યા પર્યન્તની લેશ્યાઓ છે તે સલેફ્યુજીવ છે. તેમાં જે જીવને કૃષ્ણલેશ્યા છે, તે કૃષ્ણલેશ્યાવાજીવ છે, એ જ પ્રમાણે નીલ, કાપત, તેજ, પવ, શુકલ આ બધી
श्यावाणा 47 प त वेश्यावा सभपा. 'नवर जस्स जा अत्थि' આ કૃષ્ણ વિગેરે લેશ્યા જે જીવને હોય તે જીવને તેજ લેસ્થાને ઉદ્દેશ ४शन त मा रमता मन अन्रमताना विया२ ४३ वा. 'अलेसो