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भगवतसूत्रे
यास्यन्तीति वचनप्रामाण्यात् कथितमिति, 'सेसहाणेसु जहा आहारओ' शेषस्थानेषु यथा आहारकः शेषेषु नारकादिस्थानेषु स्याच्चरमः, स्यादचरमः यो नारकादिः पुनः संसारं न प्राप्स्यतिस चरमोऽन्यस्तु अचरम इति । 'अभवसिद्धिओ सव्वत्थ एगतपुहुत्ते नो चरिमे, अचरिमे' अभवसिद्धिका सर्वत्र एकत्वपृथक्त्वेन नो चरमोऽचरमः, अभव्यः सर्वत्र जीवादिपदेषु नो चरमः अभव्यस्य भव्यत्वेना भावात्, 'मो भवसिद्धिय नो अभवसिद्धिए जीवे सिद्धेय एगतपुहुतेणं जहा अभवसिद्धिओ' नो भवसिद्धिक नो अभवसिद्धिको जीवः सिद्धच एकरचपृथक्त्वेन यथा अभवसिद्धिकः, नो भवसिद्धिक नो अभवसिद्धिको जीवन सिद्धपदेचकचरमता को प्राप्त कर लेता है- यह कथन 'सव भवसिद्धिक जीव सिद्धिको प्राप्त करेंगे' इस वचन की प्रमाणता को लेकर कहा गया है। 'सेसहाणेसु जहा आहारओ' नारकादि शेषस्थानों में आहारक के जैसा कदाचित् वह चरम भी है और कदाचित वह अचरम भी है । जो संसार को वह प्राप्त नहीं करेगा तो चरम है । और यदि प्राप्त करेगा तो अचरम है, 'अभवसिद्धिओ सन्वत्थ एगसपुहुत्ते णं नो चरिमे अचरिमे' अभवसिद्धिक जीव एकवचन बहुवचन में सर्वत्र चरम नहीं है अचरम है | अभव्य सर्वत्र जीवादि पदों में चरम नहीं है । क्योंकि अभय में भव्यरूपसे होने का अभाव है । 'नो भवसिद्धिय नो अभवसिद्धिए जीवे सिद्धेय एगत्तपुहुत्तेर्ण जहा अभवत्रिओ' नोभवसिद्धिकनो अभवसिद्धिक जीव जीवपद में और सिद्धपदमें एकवचन एवं बहुवचन को आश्रित करके अभवसिद्धिक के जैसा अचरम हैं क्योंकि ये सिद्ध
કરી લે છે. આ કથન બધા જ ભવભવસિદ્ધિક જીવ સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરશે" मे वथननी प्रभाणुताना आधारथी छु' है. "सेसट्टाणेसु जहा आहारओ" નારકાદિ બાકીના સ્થાનામાં માહારક પ્રમાણે કોઈ વાર તે ચરમ પણ થાય છે અને કઈવાર તે અચરમ પણ થાય છે જો તે સસાર પ્રાપ્ત ન કરે તે शरभ छे भने ले संसार आप्त मेरे तो मयरभ है. "अभवसिद्धिभ सव्वत्थ एगत्तपुद्दत्तेनं नो चरिमे अचरिमे" मे वयनथी अभवसिद्धि व ચરમ નથી પશુ અચરમ જ છે. અલબ્ધ મધે જીવાદિપટ્ટામાં ચરમ નથી, भ ! अलव्यमां लव्ययागु होर्ध शस्तु नधी ', नो भवसिद्धिय नो अभव सिद्धिए जीवे सिद्धेय एगत्तपुहुत्तणं जहा अभवसिद्धिओ" नो भवसिद्धि भने ને અભવસિદ્ધિક જીવ, જીવપદમાં અને સિદ્ધપદમાં એકવચન અને મહુવચનથી અભવસિદ્ધિક પ્રમાણે અચરમ છે. કેમ કે તે સિદ્ધરૂપ