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सोलहवां उद्देशा--
५३४५५ वायुकुमारों के आहार आदिका निरूपण
सत्रहवां उद्देशां-- ५६ अग्निकुमारों के आहार आदिका निरूपण
५३५-५३६ ___अठारहवां शतकका पहला उद्देशा ५७ अठारहवें शतक के उद्देशाथ संग्रहिणी गाथा
५३७-५३८ ५८ जीव से लेकर सिद्धौ तक के प्रथमाप्रथमत्वका निरूपण ५२९-५४९ ५९ प्रथमाप्रथमत्व में आहारद्वार का निरूपण ।
५५०-५५५ प्रथमाप्रथमत्व में भवाभवसिद्धिद्वार का निरूपण ५५५-५५८ प्रथमाप्रथमत्व में संज्ञिद्वार का निरूपण
५५८-५६२ ६२ प्रथमाप्रथमत्व में लेश्याद्वार का निरूपण
५६३-५६५ ६३ प्रथमाप्रथमस्व में दृष्टिद्वार का निरूपण
५६५-५६९ ६४ प्रथमाप्रथमत्व में संयतद्वार का निरूपण
५६९-५७१ ६५ प्रथमाप्रथमत्व में कपायद्वार का निरूपण
५७२-५७४ प्रथमाप्रथमत्व में ज्ञानद्वार का निरूपण
५५०-५७६ ६७ प्रथमापथमत्व में योगद्वारका निरूपण
५७७-५७८ ६८ प्रथमापथमत्व में उपयोगद्वार का निरूपण
५७८-५७९ ६९ प्रथमाप्रथमत्व में वेदद्वार का निरूपण
५७९-५८० ७० प्रथमाप्रथमत्व में शरीरद्वार का निरूपण
५८१-५८२ ७१ प्रथमाध्यमत्व में पर्याप्तिद्वार का निरूपण
२८३-५८४ ७२ चरमाचरमत्व में जीवादिद्वारों का निरूपण
५८४-६०९ दूसरा उद्देशा७३ कार्तिकशेठके चरमत्व का निरूपण
६१०-६६७ ७४ कार्तिकशेठका दीक्षाग्रहण आदिका निरूपण
६२७-६४१ तीसरा उद्देशा७५ पृथ्वीकाय आदि जीने के अन्तक्रिया का निरूपणम् ७६ अन्तक्रिया में जो निर्जरा पुदगल है उनका निरूपण
६५०-६६७ ७७ छमस्थ के संबंधमें भगवान से प्रश्नोत्तर
६६८-६७३ ७८ वन्धके स्वरूप का निरूपण
६७४-६७९ ७९ कर्मके स्वरूप का निरूपण
६८०-६८६ ८० पुद्गलके आहार आदिका निरूपण
६८७-६९१
६९१-६९६ समाप्त