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भगवतीसूत्रे - भवसिद्धिका भवन्तीति भवाः कतिपयभवैः सिद्धिर्यस्य स तथाभूतः भवसिद्धिकः,
भवसिद्धिभावेन नो प्रथमः किन्तु अभथमः एवं रूपेण एकत्ववहुलाश्रयणेन आहारकवदेव वक्तव्यता ज्ञातव्या इति एवं अभासिद्धिए वि' एवमभवसिद्धिकोऽपि यथा एकत्ववहुत्वभावेन आहारकातिदेशमाश्रित्य भवसिद्धिकविपये प्रथमत्वामयमस्वयोरेकत्ववहुत्वाश्रयणेन वक्तव्यता कथिता तथैव अभवसिद्धिकविषयेऽपि ज्ञातव्येतिभावः, नो प्रथमोऽपितु आथमः । 'नो भवसिद्धिय नो अभवसिद्धिए णं भंते।' 'भवसिद्धिए एगत्तपुहुत्ते णं जहा आहारए' हे गौतम | एकवचन और बहुवचन में भवसिद्धिक जीव आहारक जीव के जैसा अप्रथम हैं। जिन्हे फितनेक भवों के बाद सिद्धि प्राप्त होना है वे भवसिद्धिक जीव हैं ये भवसिद्धिक जीव चाहे एक हो या अनेक हों भवसिद्धि की अपेक्षा से प्रथम नहीं हैं, किन्तु अप्रथम हैं। इस प्रकार से इस सम्बन्ध में-एक भवसिद्धिक जीव के विषय में या समस्त भवसिद्धिक जीव के विषय में जैसी वक्तव्यता आहारक भाव की अपेक्षा से आहारक जीव के विषय में की गई है-वैसी ही यहां पर करलेनी चाहिये । 'एवं अभवसिद्धिए वि' इसी प्रकार से प्रथमत्व और अप्रथमत्व का कथन अभवसिद्धिक जीवों के विषय में भी कर लेना चाहिये, ये अभवसिद्धिक जीव चाहे एक हो या अनेक हो सब अप्रथम हैं, प्रथम नहीं हैं। __ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'नो भवसिद्धिए नो अभव.
प्रभु ४३ छ है-"भवसिद्धिए एगत्तपुहुत्तेणं जहा आहारए" के गौतम मे વચન અને બહુવચનમાં ભવસિદ્ધિજીવ એકવચનથી અને બહુવચનથી આહારકની જીવની માફક અપ્રથમ છે. જેઓને કેટલાક ભ પછી સિદ્ધિ પ્રાપ્ત થવાની હેય તેઓ ભાવસિદ્ધિક જીવ છે. આ ભવસિદ્ધિક જીવ એક હોય કે અનેક હોય ભવસિદ્ધિની અપેક્ષાએ પ્રથમ નથી. પરંતુ અપ્રથમ છે. આ રીતે આ સંબંધમાં–એક ભવસિદ્ધિક જીવન વિષયમાં અથવા બધા જ ભવસિદ્ધિક જીવના વિષયમાં-આહારક ભાવની અપેક્ષાથી આહારક જીવના વિષયમાં જે પ્રમાણે કહ્યું છે, તે જ પ્રમાણે અહિયાં पा] समा. "एवं अभवसिद्धिए वि" मा प्रभारी मससिद्धि छाना વિષયમાં પણ પ્રથમ અને આ પ્રથમત્વને વિચાર સમજી લે. આ અભવસિદ્ધિક જીવ એક હોય કે અનેક હાય બધા જ અપ્રથમ છે. પ્રથમ નથી. २ गोतम स्वार -
है-"नो भवसिद्धिए नो