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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१६ उ०१ सू०५ स० जीवादीनामधिकरणित्वादिनि०३३ • टीका-'कइ णं भंते' कति खलु भदन्त 'सरीरगा पण्णत्ता' शरीराणि प्रक्षसानि ? भगवानाह-'गोयमा पंच सरीरा पण्णत्वा' हे गौतम | पश्चशरीराणि मज्ञप्तानि, 'तं जहा' तद्यथा-'ओरालिए जाब कम्मए' औदारिकं यावत् वैक्रियम्, आहारकं तैजसं कार्मणम् , 'कइ णं भंते कति खलु भदन्त ! 'इंदिया. पण्णत्ता' इन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंच इंदिया पण्णत्ता' पञ्चेन्द्रियाणि मज्ञप्तानि 'तं जहा' तद्यथा-'सोइंदिए जाब फासिदिए' श्रोत्रेन्द्रियं यावत् चक्षुरिन्द्रयं, घाणेन्द्रियं, रसनेन्द्रियं, स्पर्शनेन्द्रियं ? गौतमः पृच्छति-'कइविहे गं भते' फतिविधः खलु भदन्त 'जोए पण्णत्ते' योगः प्रज्ञप्तः ? भगानाह-'गोयमा' हे - अब शरीर इन्द्रिय, एवं योगों की निर्वर्तना में समुच्चय जीव से लेकर वैमानिक पर्यंत जीवों को अधिकरणिता आदि दिखाने के लिये सूत्रकार प्रश्नोत्तर पूर्वक कथन करते हैं
'कहणं भंते । सरीरगा पत्ता इत्यादि ।
टीकार्थ-गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि-'कह णं भंते ! सरीरगा पण्णत्ता' हे भदन्त | शरीर कितने कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभुने 'कहा-'गोयमा! पंच सरीरा पणत्ता' हे गौतम शरीर पांच कहे गये हैं। 'तं जहा' जो इस प्रकार से है-'ओरालिए जाव कम्मए' औदारिक यावत्-वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण 'कह णं भते ! इंदिया 'पण्णप्ता' हे भदन्त ! इन्द्रियां कितनी कही गई हैं इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु ने कहा-'गोयमा ! पंच इंदिया पणत्ता' हे गौतम ! इन्द्रियां पांच कही गई हैं । 'तं जहा सोईदिए, जाव फासिदिए' जो इस प्रकार से हैं श्रोत्रेन्द्रिय, यावत्-चक्षुइन्द्रिय घ्राणइन्द्रिय, जिहाइन्द्रिय और स्पर्शन
હવે શરીર ઈન્દ્રીય અને રોગોની નિર્વતનામાં સમુચ્ચય જીવથી લઈને વૈમાનિક સુધીના માં અધિકરણતા વિગેરે બતાવવા માટે સૂત્રકાર પ્રશ્નોतरपू थन ४२ थे-" कह णं भंते ! सरीरंगा पन्नत्ता" त्याहि
A -गौतम स्वामी प्रभु से पूछे छ -“कइ णं भंते ! सरीरगा पन्नत्ता" भगवन् ! शरीर टारना san छ ? उत्तरमा प्रभु ४ छे ४-"गोयमा ! पच सरीरा एण्णत्ता" गौतम! शरी२ पांय
१२ हा छ. "तं जहा" २ मा प्रभारी छे. “ ओरालिए जाव कम्मए" मोहा४ि१ यावत् वैश्यिक माहा२४, स४ भने ४ामा ५ "काणं भते ! इंदिया पण्णत्ता" है भगवन् ।न्द्रिय हैटसा प्रा२नी ४ी छ १ मा प्रश्रना उत्तरमा प्रभु ४९ छे. “गोयमा! पंच इंदिया पणत्ता" गौतम ! न्द्रया पांय ४ी छ. "तंजहा खोइंदिए नाव फासिदिए" रे मा प्रभारी छे. શ્રોત્રઈન્દ્રીય, ચક્ષુઈન્દ્રીય,૨ ઘાણઈન્દ્રીય,૩ અને જીહાઈબ્રીય અને સ્પર્શન
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