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भगवती
'जं णं जीवा मणजोए चट्टमाणा' यत् खलु जीवाः मनोयोगे वर्तमाना 'मणजोग ओग्गा दव्वाई' मनोयोगपायोग्यानि द्रव्याणि 'मगजोगत्ताए' मनोयोगतया 'परिणामे माणा' परिणमयन्तः 'मणजोगचलणं चर्लिसु' मनोयोगचलनामचलन् वा 'चलजि वा चलिस्संति वा' चलन्ति वा चलिष्यन्ति वा 'से तेणट्टेणं जात्र मणजोगचलणा' तत् तेनार्थेन यावत् मनोयोगचलनेति नाम भवतीत्यर्थः । मनोयोगत्रद्वचोयोगादि ज्ञातव्यं तत्राह - ' एवं वइजोगचवळणा त्रि' एवम् मनोयोगचक्रनावत् वचोयोगवलनापि ज्ञातव्या एवं कायजोगचलणा वि' एवं काययोगचलनापि - मनोयोगचलनावद् वचोयोगचलना काययोगचलनापि ज्ञातव्या । आलापमकारथ स्वयमेव ऊहनीयः || सू० २ ॥
नाम इसका क्यों हुआ है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'जंणं जीवा झणजोए बट्टमागा' जिस कारण से मनोयोग में वर्तमान जीवों ने मनोजोगपाओग्गाई दव्बाई सणजोगत्ताए परिणामेमाणा मणजोगचलणा चलिए वा, चलति वा चलिस्तंति वा' मनोयोग प्रायोग्य द्रव्यों को मनोयोगरूप से परिणामाते हुए मनोयोग को पहिले किया है, अब भी वे उसे करते रहते हैं, तथा भविष्यत् काल में भी वे उसे करेंगे । 'से तेण्डेण जाब मणजोगचलगा' इस कारण हे गौतम । इस चलना का नाम मनोयोग चलना ऐसा हुआ है। 'एवं वह जोगचलणा वि' मनोयोगचलना के जैसा वचनयोगचलना और 'एवं कायजोगचलणा वि' इसी प्रकार कायजोगचलना भी जान लेना चाहिये । इस विषय के आलाप प्रकार अपने आप ही समझ लेना चाहिये || सू० २ ॥
जीवा मगजोए वट्टमाणा" भनोयोगमां रडेला कुवाओ ने अरथी "मणजोगपाओगाई दबाई, मणजोतत्ताए परिणामेमाणा मणजोगचलणा, चलिं वा, चलंति वा चलिस्संति वा” भनोयोग आयोग्य द्रव्याने मनोयोग३पथी परिशुમાવતા પહેલા ભૂતકાળમાં મનેયાગ કર્યાં હાય, વતમાન કાળમાં તેને કરે छे. तेभन अविष्य आजमां पशु तेथे तेने उरशे. "से तेण्ट्टेणं जाव मणजोग રહળા” તે કારણથી હું ગૌતમ આ ચલનાનું નામ મનાયેાગ ચલના એ प्रभाषे थयु छे. "एव वइजोगचलणा वि” भनोयोग यवनानी भाई वयन योग व्यसना "एवं कायजोगचलणावि" भने आययोग यलना पशु समल देवी. આ વિષયને આલાપના પ્રકાર પાતે જ સમજી લેવેા. ॥ સૂત્ર. ૨ ।।