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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१७ उ०२ सू०२ जीवानां बालपण्डितत्वादिनिरूपणम् ३९१ तदा स न एकान्तबाला, अपि तु वालपण्डित एवेति भागवतः स्वमतम् । बाल. स्वादिकमेव चतुर्विंशतिदण्डकेषु निरूपयितुमाह-'जीवा णं इत्यादि । 'जीवा णं भंते' जीवाः खलु भदन्त ! 'किं वाला, पंडिया वाल पंडिया' बालाः, पण्डिताः वालपण्डिताः विरतिरहितो वालः सर्वविरतिमन्तः पण्डिताः, देशविरताः वाल पण्डिताः ? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गीयमा' हे गौतम ! 'बाला वि' बाला अपि जीवाः 'पंडिया वि' पण्डिता अपि जीवाः 'बालपडिया वि' बाल पण्डिता अपि जीवाः समुच्चयजीवेषु बालादीनां सर्वेषां सद्भावात् । 'नेरइया णं पुच्छा' नैरयिकाः खलु पृच्छा हे भदन्त ! नारकाः बालाः पण्डिताः वालपण्डिता है पर उस पर सिद्धानकार का ऐला कहना है कि-वाह एकान्तवाल नहीं हैं किन्तु बालपण्डित ही है । अब चौवीस दण्डकों में इसी बालस्वादिकी प्ररूपणा करने के लिये सनशार आगे का प्रकरण प्रारम्भ करते हैं। इसमें गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है। 'जीवाणं भंते ! कि बाला पंडिया बालपंडिया' हे भदन्त ! जीव क्या चाल हैं ? या पण्डित हैं ? या बालपण्डित है ? जो विरतिरहित होता है वह वाल है, सर्वविरति से युक्त जो होते हैं वे पण्डित हैं, तथा जो देशविरति से संपन्न होते हैं वे बालपण्डित हैं। इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोषमा' हे गौतम ! 'जीवा पाला वि, पंडिया वि, बालपंडिया वि' जीव बाल भी होते हैं, 'पंण्डित भी होते हैं, 'बालपण्डित भी होते हैं। इस प्रकार सामान्य जीव में चालादिकों का सब का सद्भाव है।
अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'मेरझ्या पुच्छा ' हे भदन्त । , વિરાધના કરે છે તે એકાન્તબાળ છે પરંતુ તે વિષયમાં સિદ્ધાન્તકારોને એવું કહેવું છે કે તે એકાનાબાળ નથી પરંતુ માલ પંડિત જ છે.
હવે ગ્રેવીસ દંડકેથી આ બાલ વિગેરેની પ્રરૂપણ કરવા માટે સૂત્રકાર વિશેષ વિવેચન કરે છે. તેમાં ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને એવું પૂછે છે કે"जीवा णं भवेकि बाला पडिया बालपडिया" लगवन् वा शुमा छ? કે પંડિત છે? કે બાલ પંડિત છે? જે વિરતિ રહિત હોય છે તે બાલ કહેવાય છે. સર્વવિરતિ વાળો જે હોય તે પંડિત છે. તેમજ જે દેશવિરતિવાળ डाय ते मासपति छे. या प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ -"गोयमा" गोतम ७५ "बाला वि" मार पर हाय छे. 'पडिया वि' यति पण डाय छे. तथा "बालपंडिया वि" माल त हाय छे. मा शत સામાન્ય જીવમાં બ લાદિકનો સદુભાવ છે. હવે ગૌતમસ્વામી નારઠના विषयमा प्रभुने पूछे छे -"नेरइया णं पुच्छा" हे भगवन् नारीय व