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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१७ ३०१ २०१ उदायि-भूतानन्दहस्तिराजवक्तव्यता ३३७ कुतुहलों गौतमो हस्तिपवरयो रुदायिभूतानन्दयोर्विशेषतः सरूपं ज्ञातु प्रश्न यंनाह-'उदायी णं भंते !' उदायी खलु भदन्त ! 'हत्थिराया' हस्तिराजःहस्तीनाम् राजा इति हस्तिराजा-राजहस्ती, हस्तिषु प्रधान: उदायी नामकः 'कभोहितो अणंतर उन्मट्टित्ता' कुतोऽनन्तरमुद्वर्त्य निामृत्य कस्मात् खलु गति विशेषात् आगत्य 'उदापिहस्थिरायत्ताए उववन्ने' उदायिहस्तिराजतया उपपन्नः कुणिकराज्ञ उदायिनामकपट्टइस्ती। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा ! हे गौतम ! 'अमुरकुनारेहितो देवेहितो' असुरकुमारेभ्यो देवेभ्यः 'अणंतरं उन्नहिता' अनन्तरमुद्वयं-अमुरकुमाराख्यदेवगवितश्च्युत्वेत्यर्थः 'उदायिहत्थिरायत्तार उववन्ने' 'उदायिहस्तिराजतया उपपन्ना-उदायिनामक प्रवरकुञ्जरस्वरूपेण उत्पन्न इति । उदायी णं भंते !' उदायी खल्लु भदन्त ! थे। क्योंकि उदायी एवं भूनानन्द हाथियों को देखकर ही गौतम को उनके विषय में आश्चर्य उत्पन्न हुआ था सो इन्हीं के विषय में गौतमने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया 'उदायी णं भंते! हस्थिराया' हे भदन्त ! हस्तिराज जो उदायी है वह 'कओहितो अणंतरं उव्वहिता' 'किस गति विशेष से आकर के 'उदायिहत्थिरायत्ताए उववन्ने' उदायी हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ है ? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा-'गोयमा । असुरकुमारेहितो देवेहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता उदायिहस्थिरायत्ताए उघवन्ने' हे गौतम ! वह असुरकुमार देवों में से मर कर असुरकुमार देवगति से च्युत होकर उदायी हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ है । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'उदायी णं भंते ! हत्थिराया' हे भदन्त ! हस्तिराज उदायी 'कालमासे कालं किच्चा' कालमास में-मरण के समय में मरण બે હાથી હતા. તેનું નામ ઉદાયી, અને ભૂતાનન્દ હતું તે બનને હાથીઓને જોઈને ગૌતમ સ્વામીને તેઓના વિષયમાં આશ્ચર્ય થયું જેથી તેને જ ઉદ્દેશીને ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને આ પ્રમાણે પૂછયું "उदायी ण भंते हत्थिराया", समपन् ! स्ति। २ Strn छ. त "कओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता" 5 गति विशेषथी भावान 'उदायी हत्थिरायत्ताए उववन्ने" Sath स्ति । ३५थी उत्पन्न थयो छ१ तना उत्तरमा प्रभु ४ छ । “गोयमा असुरकुमारे हितो अणंतरं उबट्टित्ता उदायी हथिरायत्ताए उववन्ने" गौतम, a हवामाथी भरीन એટલે કે અસુરકુમાર દેવગતીથી ચવીને ઉદાયી હસ્તિરાજ પણુથી ઉત્પન્ન थयो छ. शथा गौतमस्वामी प्रभुने मे पूछे छे है "उदायी णं भंते !
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