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________________ ટ भगवती सूत्रे भगवन्तं महावीरं वन्दित्वा यावत् पर्युपास्य, अत्र यावत्पदेन नमस्थित्वा सत्कार्य नात्यासन्ने नातिदूरे प्राञ्जलिपुटः सन् इत्यादि विशेषणानां सङ्ग्रहो भवति, 'इमं एयारूत्रं वागरणं पुच्छित्तए' इममेतावद्रूपं व्याकरणं प्रश्नं प्रष्टुम् श्रेय इति पूर्वेण सम्बन्धः 'त्ति कट्टु' इति कृत्वा 'एवं संप्रेक्षते विचारयति, 'एवं संपेदित्ता' एवं संप्रेक्ष्य - विचार्य ' चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं' चतसृभिः सामानिकसाहस्त्रीभिः चतुर्भिः सामानिकसह से रित्यर्थः 'परियारो' परिवारः 'जहा सूरियाभस्स' यथा सूर्याभस्य सूर्यामदेवस्य परिवारः राजप्रश्नीयसूत्रे प्रतिपादितस्तथैव इहापि परिवारो ज्ञातव्यः 'जहा सूरिया मस्स' अनेन इदं सूचितं भवति 'तिहिं परिसाहि सतहिं अणी एहिं अणीयाहिवईहिं सोलसहि आयरक्खदेवसाहस्सी हि अन्नेहिय बहूर्हि महासामाणविमाणवासीहि वैमाणिएहि देवेहिं सर्द्धि संपरिवुडे' इत्यादि । छाया-यथा सूर्यामस्य - तिसृभिः परिषद्भिः सप्तभिरनीकै अनीकाधिपतिभिः, षोडशभिः आत्मरक्षकदेव साहस्रीमिः अन्यैश्च बहुभिः महासामानिकविमानवासिभिः वैमानिकैः देवैः सह संपरिवृत्तः । एतादृशपरिवारैः परिवृतः 'जाव निग्घोसनाइयरवेण' यावत् निर्घोषनादितरवेण 'जेणेव जंबुद्दीवे' हीवे' अब मुझे यही उचित है कि मैं श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना करके यावत् पर्युपासना करके 'इमं एयारूवं वागरणं पुच्छित्तए' उनसे इस प्रकार के इस व्याकरण- प्रश्न को पुछू यहां पर भी यावत्पद से 'नमंसित्ता' नत्यासन्ने नातिदूरे प्राज्जलिपुटः सन् ' इत्यादि पदों का ग्रहण हुआ है । 'त्तिकट्टु एवं संपेहेह' इस प्रकार से उसने विचार किया - ' एवं संपेहित्ता' ऐसा विचार कर 'चउहिं सामाणिय साहस्सीहिं परिवारो' वह अपने चार हजार सामानिक परिवार के साथ, जैसा कि 'जहा सूरियाभस्स' राजप्रश्नीय सूत्र में सूर्याभदेव का परिवार कहा गया है उस से घिरे हुए सूर्याभदेव के जैसा 'जाव निग्धो सनाइयरवेणं' यावत् निर्घोषनादितरवपूर्वक 'जेणेव जंबूदीवे दीवे' σε " वन्हना पुरीने यावत् पर्युपासना उरीने "इस एयारूवं वागरणं पुच्छित्तए " तेथेने या रीतना प्रश्नो पृछु अडिया पशु यावत् पथी " नमसिता नत्यासन्ने नातिदूरे प्राञ्जलिपुटः सन् ” छत्याहि यहोने संग्रह थयो छे. तिक एवं संपेes भा प्रभा तेथे विचार ये " एवं संपेहित्ता " આવા વિચાર કરીને " चउहि सामाणियसाहस्सीहि परियारो” ते सभ्यश्रृष्टि देव पोताना यार हमर सामानि हेवनी साथै देवी रीते है - " जहा सूरियामस्त” राज्यनीय सूत्रां सूर्याल हेवन। परिवार वामां भाव्यो छे, તેનાથી ઘેરાયેલા સૂર્યભ દેવની 66 માક जाव निग्घोसणाइयरवेणं " यावत्
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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