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________________ प्रभयचन्द्रिका टीका श० १६ उ०५ १०२ शकेन्द्रविषयकप्रश्नस्पष्टीकरणम् १४५ समाननामकरिमाने 'दो देवा महड्रिया जाव महाप्तोक्खा' द्वौं देवौ महर्दिको यार महासौख्यौ यावत्पदेन 'महज्जुइए महाबले महाजसे' एतेषां सङ्ग्रहः 'एगविमाणंसि देवताए उपवन्ना' एकस्मिन् विमाने देवतया उत्पनी 'तं जहा' तधथा 'मायिमिच्छादिहिउववन्नए य' मायी मिथ्यादृष्टयुपपन्नाश्च, 'अमायि सम्मदिहि उववनए य' अमायि सभ्यम् दृष्टयुपपन्नकश्च 'तए णं से माथिमिच्छादिद्वि उववाएं देवे' ततः खच स माथिमिथ्यादृष्टयुपपनको देवः 'तं अमायि सम्भदिढि उच्चन्नगं देवं एवं क्यासी' तममायिसम्यगृदृष्टयुपपाकं देवम् एवम् वक्ष्यमाणमकारमवादीत् । कियुक्तवान् पूर्वो,देवोऽपरं देवं तत्राइ-परिणममाणा पोग्गला नो परिणया' परिणममानाः पुद्गलाः, नो परिणताः, अपि तु 'अपरिणया' कप्पे महालमाणे विमाणे महाशुक्र कल्प में महासमाननामक विमान में 'दो देवा मडिया जाव महालोक्खा' महर्द्धिक यावत् महासौख्य सुख संपन्न दो देव एगरिमाणसि देवताए उपचन्ना' एक विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए हैं, यहांथावत् पद से महज्जुइए महाबले महाजसे 'इन पदोंका संग्रह हुआ है । 'तं जहा-मायिमिच्छाडि उवचन्नए य, अमाथिसम्मादिट्टि उववन्नए ' इनमें एक मायी मिथ्यादृष्टि देव उत्पन्न हुआ है, एक अमायीसम्पष्टि उपनिक देव है। 'तए णं समायिमिच्छादिष्टि उववन्नए देवे' उस मायी नियमादृष्टि उपपन्नक देखने 'तं अमाथी लम्मादीडिं उव. वन्नगं देवं एवं बधासी' उस अमाथी सम्यग्दृष्टि उपपन्नक देव से ऐसा कहा-'परिणममाणा पोग्गला नो परिणया परिणाम को प्राप्त करते हए पुद्गल परिणत नहीं कहे जाते हैं, अपितु वे 'अपरिणया' अपरिणत ही कहे सके कप्पे महासमाणे विमाणे " माशु ४६५i महासभान नामना विभानभा “ दो देवा महड्ढिया जाव महासोक्खा " महाद्धिपणा याक्तू महासुम पाणा मे देव " एगविमाणंसि देवत्ताए उववन्ना" मे विमानमा ३५ ३५था उत्पन्न थय। छे. मडिया यावत् ५४थी “ महज्जुइए महाबले महाजसे" मा पहन सड थय। छ. 'तं जहा-मासिमिच्छादिट्ठि उववण्णए य अमायिसम्मा. दिष्ट्रि उववन्नएय "मे भायि मिथ्याष्टिवाणा हे पनि यो . भने : समाया सभ्यमूटिवाणा व उत्पन्न थये। छे. “तए णं से मायिमिळादिदि उववन्नए देवे" से उत्पन्न थये। मायामिथ्याष्ट देव "तं अमायि सन्मादिहि स्ववन्नग देव एवं क्यासी" त मसायी सभ्यपूष्ट पन्त थयेसा हवन मा प्रमाणे यु-" परिणममाणा पोग्गला नो परिणया" परिशुतीन अस ४२ना। पुरस, परिणत 3ाता नथा परंतु ते "अपरिणया" अ५.
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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