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प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १६ उ०५ सू०२ शकेन्द्रविषयकप्रश्नस्पष्टीकरणम् १३९ वयासी' वन्दित्वा नमस्यित्वा एवम् वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् 'अन्नया णं भंते' अन्यदा अन्यस्मिन् काले खलु भदन्त ! 'सक्के देविदे देवराया' शक्रो देवेन्द्रो देवराजः 'देवाणुप्पियं बंदइ नमसइ सकारेइ' देवानुभियं भगवन्तं वन्दते नमस्यति सत्करोति 'जाव पज्जुवासइ' यावत् पर्युषास्ते, अत्र यावत्पदेन 'सक्कारेइ सम्मानेइ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइय' इत्यादिनां सङ्ग्रहः 'किणं भंते ! अज्जसक्के देविदे देवराया' किं खलु भदन्त ! अद्य शको देवेन्द्रो देवराजः 'देवाणुपियं अट्ट उक्खित्तपरिणागरणाई पुच्छई' देवानमियम् अष्टौरिक्षप्तपश्नव्याकरणानि पृच्छति 'पुच्छित्ता संभतियवंदणएणं वंदा नमंसइ जात्र पंडिगए' भगवान महावीर को बन्दना की-गुणस्तुति की 'नमलई' नमस्कार किया 'वंदित्ता नमंसित्तो' बन्दना नमस्कार करके 'एवं बयासी' फिर उन से इस प्रकार कहा-पूछा-'अन्नया णं भंते ! हे भदन्त ! जब कभी "सक्के देविंदे देवराया' 'देवेन्द्र देवराज शक 'देवाणुप्पियं बंदह नमसइ, सक्कारेइ, 'आप देवानुप्रिय को वन्दना करता था नमस्कार करता था, सत्कार करता था। जाव पज्जुवासई तब वह आपकी यावत् पयु. पासना करता था-यहांधावत् शब्द से-'सक्कारेइ, सम्माणेइ, कल्लाण, मंगले, देवयं' इत्यादि पदों का संग्रह हुआ है फिर आज 'किण्ण भंते ! अज्ज सक्के देविद देवराया' क्या बात है जो देवेन्द्र देवराज शक्रने 'देवाणुपियं अट्ठ उक्खित्तपलिणवागरणाई पुच्छई' आप देवानुप्रिंय से आठ उत्क्षिप्त-पूछने योग्य प्रश्न-व्याकरणों को पूछा है और 'पुच्छिता' पूछ करके ही 'संभंतियवंदणएणं वंदह, 'जाव पडिगए' वह उतावली के साथ आपको वन्दना, नमस्कार "नमसइ" नमः॥२ या " वंदिता नमंसित्ता" ना नमार शन " एवं वयात्री" पछी भगवानन ॥ प्रभारी पूछ्यु " अन्नया णं भंते !
सस ! यारे "सक्के देविंदे देवराया" हेवेन्द्र देवरा "देवाणुपियं वंदा नमसइ सक्कारेइ" ५ वानुप्रियन ना ४२ता ता नभ. २२ ४२ता 81 सा२ ४२ता al. " जाव पज्जुवासइ" ५ तेन्द्र यावत् पपासना ४२ता उता मडिया ' यावत् ' श४थी "सक्कारेइ सम्माणेड, कल्लाणं, मंगलं देवयं चेइयं " 'त्या' पहने। सह थय। छता पछी गार “किग्णं भंते ! अज्ज सक्के देविदे देवराया" शु वात छ। हेवेन्द्र ३१४ छन्द्रे 'देवाणुप्पियं अट्ठ उक्खित्तपसिणवागरणाई पुच्छह" मा५वानुप्रियन पूछ। यो५ मा प्रश्न पूछया छे मन. "पूच्छित्ता" पूछीन तरत "संभंतियवंदणएणं वंदइ, जाव पडिगए" ताणधी मापन ..