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प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १३ उ०४ सू०९ प्ति० पु० स्पर्शनाद्वारनिरूपणम् ६३९
येन द्विभदेशावगाहवाद- स्पृष्टी, द्वौ चाधस्तनौ च द्वौ, पूर्वपश्चिप्रपार्शयोश्च द्वौ हो, दक्षिणोत्तरपार्श्वयोश्च एकैक इत्येवमेव मेते द्वादश इति भावः । उत्कृष्टपदे द्वादश स्पर्शमदेशककोष्ठकम् यंत्र पृष्ठे द्वितीयांके.अवलोकनीयम् ? .....एवं अहम्मस्थिकायप्पएसेहि वि' एवं-पूर्वोक्तरीत्यैव, अधर्मास्तिकायपदेशैरपि जघन्येन षभिः, उत्कृष्टेन द्वादशभिः द्वौ पुद्गलास्तिकायप्रदेशौ स्पृष्ट्री भवत , उक्तयुक्तः२ गौतमः पृच्छति- केत्रइएहि आगासस्थिकायपए सेहि-पुढा?' हे भदन्त ! कियद्भिः आकाशास्तिकायमदेशैः द्वौ पुद्गलास्तिकायप्रदेशौ स्पृष्टौ भवतः भगवानाह-वारसहि; सेसं जहा-धम्मस्थिकायस्स' हे-गौतम!-द्वादशभिः वह इस प्रकार से-परमाणुव्य द्वारा अवग़ाहित छुए स्थान के दो प्रदेश, नीचे के दो प्रदेश और ऊपर के दो प्रदेश, पूर्वपश्चिम पार्य के दो दो प्रदेश, तथा दक्षिण उत्तरं पाव को एक एक प्रदेश इस प्रकार से धर्मास्तिकाय के १२ प्रदेशों द्वारा संस्कृष्ट स्पर्शना होती है । उत्कृष्ट पद में १२ स्पर्शक प्रदेशों द्वारा स्पर्शनों का आकार यंत्रपृष्ठ में नं. २ दो देख लेवें । एवं अहमस्थिकाचपए सेहिवि" इसी प्रकार ६ अधर्मास्तिक्षायप्रदेशों द्वारा पुद्धलास्तिकायों के दो प्रदेश जघन्य से स्पृष्ट होते हैं, और अधमास्तिकाय के १२ प्रदेशों द्वारा युद्धलास्तिकाय के दो प्रदेश उस्कृष्ट से स्पृष्ट होते हैं। इस विषय के स्पष्टीकरण, में गुक्ति पूर्वोक्त जैसी ही है ।। - अप गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-केवाइपहिआगासत्थिकायपरसेहिपुढे हे अदन्त, कितने, आमाशास्तिकाय प्रदेशों द्वारा पुद्गलास्तिकाय के दो-प्रदेश स्पृष्ट होते हैं? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'यारसा सेंसं
जहा धम्मत्थिकायस्स' हे गौतम ! १२ आकांशास्तिकाय प्रदेशों द्वारा | પરમાણુ દ્વારા અવગોહિત થયેલા સ્થાનના બે પ્રદેશ, નીચેના બે પ્રર્દેશ અને - ઉપરની બે પ્રદેશના પૂર્વ પશ્ચિમ તરફના અબ્બે પ્રદેશ, તથા દક્ષિશુઉત્તર તરફને
એક એક પ્રદેશમાં આ રીતે ધમસ્તિકાયના વધારેમાં વધારે બાર પ્રદેશે વડે સ્પર્શના થાય છે ધધારેમાં વધારે ૧૨ • પશેકપ્રદેશ દ્વારા સ્પર્શનાની આકૃતિ યંત્રજમાં નં. ૨ એની જોઈ લેવી. -- ....." एवं अहमथिकायपएसेंहि वि"... प्रभा . पुरसतियना में પ્રદેશ એ છામાં ઓછા ૬ અને વધારેમાં વધારે ૧૨ અધર્માસ્તિકાયપ્રદેશ વડે પૃષ્ટ થાય છે આ વિષયનું સ્પષ્ટીકરણ , ઉપરના સ્પષ્ટીકરણું प्रभार सभा : :........
गौतम स्वाभाना प्र वाहि आगासस्थिकायपसेहि पुढा" ભગવન્! પુલાસ્તિનાં બે પ્રશાં આકાશાસ્તિકાયના કેટલા પ્રદેશો 43 स्पृष्ट थाय छ१ . - महावीर प्रभुना उत्तर-" वारसहि, सेसं जहा धम्मस्थिकायस्स"