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________________ ५३४ भगवतीसूत्र दिशि चत्वारिंशल्लक्षाणीति षट्सप्ततिलक्षाणि भवनानि एकैकेषां भवन्तीति । अथ च सर्वेषां भरनपतीनां सर्वसङ्काळनया द्विसप्ततिलक्षोत्तरसप्तकोटिपरिमितानि (७७२०००००) भवनानि भवन्ति । तेपु चोत्तरदिशि सर्वसङ्कलनया-पट्पष्टिलक्षोत्तरत्रिकोटि परिभितानि (३६६०००००) भवनानि, तथा दक्षिणदिशि सर्व संकलनया पटूलक्षोत्तरचतुष्कोटि परिमितानि (४०६०००००) भवनानी सन्तीति जातानि सर्वाणि द्विसप्ततिलक्षोत्तरसप्तकोटिसंख्यकानि (७७२० ०००) भवन्तीति भावः। गौतमः पृच्छति-'केवइयाणं भंते ! वाणमंतरावाससयसहस्सा पणत्ता ?' हे भदन्त ! कियन्ति खलु वानव्यन्तरावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि ? भगवानाई'गोयमा! असंखेज्जा वाणमंतरावाससयसहस्सा पण्णसा' हे गौतम ! असंख्येयानि वानव्यन्तरावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि । गौतमः पृच्छति-'ते णं भंते ! कि संखे -अग्निकुमार इनके बीच में एक एक के उत्तरदिशा में ३६ लाख और दक्षिणदिशा में ४० लाख इस प्रकार ७६ लाख भवन प्रत्येक के हैं। इन सब अवलों की संख्या का जोड ७७२००००० सातकरोड बहत्तर लाख होते हैं। उत्तरदिशा के भवनों का जोड ३६६००००० होते हैं और दक्षिणदिशा के भवनों का जोड ४०६००००० होता हैं। इस प्रकार से इनका जोड कुल ७७२००००० हो जाता है। - अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'केवहया णं भते ! वाण: मंतरावाललयलहस्सा पण्णत्ता' हे भदन्त ! वानव्यन्तरों के आवासों की संख्या कितने लाख की कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा! असंखेज्जा बागमंतरावाससयसहस्सा पगत्ता' हे गौतम ! वांनव्यन्तरों के आवासों की संख्या असंख्यात लाख की कही गई है। પ્રત્યેકના ઉત્તર દિશામાં ૩૬-૩૬ લાખ અને દક્ષિણ દિશામાં ૪૦-૪૦ લાખ ભવને મળી કુલ ૭૬-૭૬ લાખ ભવને છે ઉત્તર દિશાના ભવાને કુલ સરવાળે ૩૬૬૦૦૦૦૦ અને દક્ષિણ દિશાના ભવનોને કુલ સરવાળે ૪૦૦૦૦૦૦૦ થાય છે. આ રીતે ભવનપતિઓના દસે નિકાયના દેના ભવનેને કુલ સરવાળે ૭૭૨૦૦૩૦૦ થાય છે. गौतम स्वामीना प्रश्न-" केवइयाण भंते । वाणमंतरावाससयसहस्सा पण्णत्ता" 3 भगवन् ! पान०यन्तर हेवाना स साम मापासे है? महावीर प्रभुने। उत्त२-" गोयमा! असंखेज्जा वाणमंतरावाससयसहस्सापण्णत्ता" गौतम! पान०यन्तन भावासानी सभ्या असण्यात सानी ४ही. छे.
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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