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________________ प्रमैयर्यान्द्रका टीका श० १३ ७० ४ सू० १ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् १९ पञ्चधापि क्रियते, तत्र 'दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयो चउप्पएसिए खवे भाइ' पञ्च प्रदेशिकः स्कन्धो द्विधा क्रियमाणः, एकत:-एकमागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकतः-अपरभागे चतुष्पदेशिकः स्कन्धो भवति, ' अहवा एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवइ, एगयो तिप्पएसिए खधे भवई' अथवा एकतः-एकभागे द्विप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, एकता-अपरभागे त्रिप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयी तिप्पएसिए खंधे भवइ' अथवा एकत:-एकभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतःअपरभागे त्रिप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, "तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयो तिप्पएसिए खंधे भवई' त्रिधा क्रियमाणः एकतःएकभागे द्वौ परमाणुपुद्गलौं भवतः, एकतः-थपरभागे त्रिपदेशिक: स्कन्धो भवति, 'अहवा विकज्जइ' जब इस पंचपदेशिक खंध के विभाग किये जाते हैं तो वे विभाग दो भी हो सकते हैं, तीन भी हो सकते हैं, चार भी हो सकते हैं और पांच भी हो सकते हैं । 'दुहा काजमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयो चउप्पएसिर खंधेभव' जय पंचप्रदेशिक स्कन्ध दो विभागों में विभक्त किया जाता है-तब एक विभाग परमाणुपुद्गल रूप होता है, और दूसरा विभाग चतुष्पदेशिक स्कन्धरूप होता है । 'अहवाएगयो दुप्पएसिए खंधे भवह, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवह' अथवा-एक भाग में विप्रदेशिक स्कंध होता है और द्वितीय भाग में त्रिप्रदेशिक स्कंध होता है । 'तिहा कज्जमाणे एगयो दो परमाणुणेगला, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवइ' जब इस पंचप्रदेशिक स्कंध को तीन विभागों में विभक्त किया जाता है-तब दो विभाग एक २ परमाणुपुगलरूप होते हैं और तीसरा विभाग त्रिप्रदेशिक एक स्कन्धरूप हो વિભા કરવામા આવે છે ત્યારે તેના બે વિભાગ પણ થઈ શકે છે, ત્રણ विमा ५ य श छ. “दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ चउप्पएसिए खंघे भाइ" ब्यारे पयशिर २४ घने में विलापमा वित કરવામાં આવે છે ત્યારે એક વિભાગ એક પરમાણુ યુદ્ધલરૂપ અને બીજો मिला यतुष्प्रशि४ २४५३५ मन छ “ अहवा-एगयओ दुप्पएसिए खधे भवइ, गयओ तिप्पएसिए खंधे भवइ" अथवा-विप्रशि: २४५३५ मे माग मन निशि: २४५३५ मा समपन्न थाय छे. “तिहा कन्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवइ' ल्यारे माय પ્રદેશિક રકધને ત્રણ વિભાગોમાં વિભક્ત કરવામાં આવે છે, ત્યારે તેના બે વિભાગો એક એક પરમાણુ પુલ રૂપ હોય છે અને ત્રીજો વિભાગ ત્રિપ્રદે
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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