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________________ भगवतीस्त्र क्रियमाणः, एकतः-एकमागे द्वौ परमाणुपुद्गलौ भरतः, एकतः अपरभागे दि. प्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'चउहा कव्जमाणे चत्तारि परमाणुपोग्गला भति' चतुष्पदेशिकः स्कन्धश्चतुर्धा क्रियमाणः चत्वारः परमाणुपुद्गलाः भवन्ति । गौतमः पृच्छति-'पंच भंते ! परमाणुपोग्गला पुच्छा' हे भदन्त | पञ्च परमाणुपुद्गलाः एकत.-एकत्वेन संहन्यन्ते, एकनः संहत्य किं स्वरूपं वस्तु गति? इति पृच्छाभगवानाह-'गोयमा । पंच पएसिए खंधे भवइ' हे गौतम ! पञ्च परमाणुरुद्गलाः संहत्य पश्चपदेशिकः स्कन्धो भवति, 'से भिजमाणे दुहावि, निहावि, चउहावि, पंचहावि कज्जइ' स पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धो, भिद्यमानो द्विधापि, त्रिधापि, चतुर्धापि, खंधे भवइ ' जव चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध को तीन विभाग में विभक्त किया जाता है-तब एक भाग में दो परमाणुपुद्गल होते हैं-अर्थात्-१-१ परमाणुपुद्गल रूप दो भाग होते हैं, और तीसरा भाग द्विप्रदेशिक स्कन्धरूप होता है। 'चउहाकज्जमाणे चत्तारि परमाणुपोग्गला भवंति' जब चतुष्पदेशिक स्कन्ध चार विभागों में विभक्त किया जाता है-तो इसके चार परमाणुपुद्गलरूप चार विभाग होते है। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'पंच भंते! परमाणुपोग्गला पुच्छा' हे भदन्त ! परमाणुपुद्गल जब एक रूप से होकर आपस में मिलते है-तष उनके मेल से क्या वस्तु उत्पन्न होती है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! पंचपएसिए वंधे भव' हे गौतम ! जय पांच परमाणु आपस में मिलते हैं-तब इनके सेल से पचप्रदेशिक स्कन्ध होता है । ' से भिज्जमाणे दुहा वि तिहा वि, चहा वि, पंचहा છે, ત્યારે એક એક પરમાણુ યુદ્ગલવાળા બે ભાગે અને દ્વિપ્રદેશિક સકંધ રૂપ श्री मा थाय छे. "चउड़ा कज्जमाणे चत्तारि परमाणुपोग्गला भवंति" ચતુષ્પદેશિક કંધને જ્યારે ચાર વિભાગમાં વિભક્ત કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક એક પરમાણુ પુલરૂપ ચાર ભાગો થઈ જાય છે. गौतम स्वाभान प्रश्न-"पंच भंते ! परमाणुपोग्गला पुच्छा"D . વાન ! જ્યારે પાંચ પરમાણુ યુદ્ધ એકત્રિત થઈ જાય છે ત્યારે તેમના સાગથી શું બને છે ? __ महावीर प्रभुन। उत्तर-" गोयमा ! पंचपएसिए खंने भव" गौतम ! જ્યારે પાંચ પરમાણુઓને પરસ્પરની સાથે સંગ થાય છે, ત્યારે તેમના संयोगने सीधे पय प्रशि: २४ पन्न थाय छे. “से भिज्जमाणे दुहा वि, तिहा वि, चहा वि, पंचहा वि कन्जइ" क्यारे मा ५यप्रशि: २४ घना
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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