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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२३० ९सू० ५ भव्यद्रव्यदेवाद्युद्वर्त्तननिरूपणम् नवरम् - स्थित्यपेक्षया संस्थिते विशेषस्तु धर्मदेवस्य संस्थितिः जघन्येन एकं समयं शुभभावप्रतिपत्तिसमयानन्तरमेव मरणात् उत्कृष्टेन तु देशोना पूर्वकोदी भवति ।
अथ अन्तरद्वारमाह-'भवियदव्वदेवस्य णं मंते । केवइयं कालं अंतरं होई ?' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! भव्यद्रव्यदेवस्य खल कियन्तं कालम्, अन्तरम् - पूर्वभवत्यागानन्तरभवान्तरप्राप्तौ व्यवधानम्, भवति ? भगवानाह - 'गोयमा ! जहणेणं दसवाससहस्सा अंतोमुहुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं अनंतं कालं वणस्सइ कालो' हे गौतम! भव्यद्रव्य देवस्य अन्तरम्, जघन्येन दशवर्षसहस्राणि अन्तमुहूर्त्ताभ्यधिकानि भवन्ति तथाहि भविकद्रव्यदेवो भूत्वा दशवर्षसहस्रस्थितिकेषु यहां प्रकट किया गया है- अर्थात् धर्मदेव की स्थिति की अपेक्षा संस्थिति में ऐसी विषमता है कि धर्मदेव की संस्थिति, जघन्य से एक समय की होती है- क्योंकि अशुभ भाव में जाकर फिर उन अशुभ भाव से निवृत्त होकर शुभ भावों की प्रतिपत्ति के एक समय के बाद ही मरण हो जाता है, तथा उत्कृष्ट से वह देशोनपूर्वकोटि की होती है ।
अब अन्तरद्वार की सूत्रकार प्ररूपणा करते हैं-'भवियदव्वदेवस्सं णं भंते । केवइयं कालं अन्तरं होइ ' हे भदन्त । भविकद्रव्यदेव का कितने काल का अंतर होता है ? अर्थात् - पूर्वभव के त्याग के बाद भवान्तर प्राप्ति हो जाने पर पुनः भविकद्रव्यदेव की पर्याय में आने तक बीच में कितने काल का अन्तर होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम ! ' जहण्जेणं दसवाससहस्साई अन्तोमुहुत्तमम्भहियाई ' भव्यद्रव्यदेव का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त अधिक दशहजार वर्ष का होता है, यह अन्तर इस प्रकार से जानना चाहिये (भविकद्रव्यदेव આછી એક સમયની હાય છે (કારણ કે શુભભાવાની પ્રતિપત્તિના સમય ખાઈ જ મરણુ થઈ જાય છે) અને ઉત્કૃષ્ટ સ’સ્થિતિ દેશનપૂવ કાટિની હાય છે, હવે સૂત્રકાર અન્તરદ્વારની પ્રરૂપણા કરે છે—
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गौतम स्वाभीना प्रश्न - " भवियदवदेवाणं भंते! केवइयं कालं अंतरं होइ ? हे भगवन् । विद्रव्य देवतु अजनी अपेक्षा डेंटलु तर उ છે? એટલે કે ભવિક ધ્રુવની પર્યાયને ત્યાગ કરીને-ભવાન્તરામાં ગમન કરીને ફ્રીથી વિકદ્રવ્ય દેવ પર્યાયની ઉત્પત્તિમાં કેટલા કાળના આંતરેા પડી જાય છે?
भहावीर प्रभुना उत्तर-" गोयमा ! हे गौतम! ' जहणेणं दसवाससहहसाई, अंतोमुहुत्तमम्भहियाई " भविद्रव्य देवने पुनः अविद्रव्यनी पर्यायनी પ્રાપ્તિ થવામાં કાળની અપેક્ષાએ આછામાં ઓછુ દસ હજાર વર્ષ અને એક અંતમુહૂત પ્રમાણુકાળનુ અંતર પડી જાય છે. તે અંતરનુ સ્પષ્ટીકરણ આ