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भगवतीसूत्रे रितिभावः । उत्कृष्टेन तु त्रीणि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता उत्तरकुर्नादि मनु जादीनां देवेष्वेगोत्पादात् , ते च भव्यद्रव्यदेवाः सन्ति, अत स्तेपा मुत्कर्पतः त्रीणि पल्योपमानि स्थितिरिति भावः । गौतमः पृच्छति-'नरदेवाणं पुच्छा?" हे भदन्त ! नरदेवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? इनि पृच्छा, भगवानाह'गोयमा ! जहन्नेणं सत्तवास पयाई, उक्कोसेणं चउरासीई पुनसयसहस्साई' हे गौतम ! नरदेवानां चक्रवादीनां जघन्येन सप्तवर्षशतानि स्थितिः प्रज्ञप्ता, यथाब्रह्मदत्तस्य प्रतिपादिता, उत्कृष्टेन तु चतुरशीति पूर्वशतसहस्राणि-चतुरशीतिलक्षपूर्वाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता, यथा भरतस्य प्रतिपादिता। गौतमः पृच्छतिअन्तर्मुहूर्त की कही गई है। तथा उत्कृष्ट से जो इसकी स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है उसका कारण यह है कि उत्तरकुरु आदि में वहां के मनुष्य तिर्यचों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की होती है एवं वे मरकर नियम से देवरूप से ही उत्पन्न होते हैं। ये उत्तरकुरु आदि के जीव भव्यद्रव्यदेव हैं-इसलिये, कि ये देवों में ही उत्पन्न होने वाले होते हैं-अन्यत्र नहीं।
अव गौतम प्रभु से ऐसा पूछते है-'नरदेवाण पुच्छा' हे भदन्त ! नरदेवों की स्थिति कितने काल की होती है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा' हे गौतम ? 'जहण्णेणं सत्तबासलयाई, उक्कोसेणं चउरासीईपुव्वसयसहस्लाई' चक्रवर्ती रूप नरदेवों की स्थिति जघन्य से सातसौ वर्ष की कही गई है, जैसी कि ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती की और उत्कृष्ट से इनकी स्थिति चौरासी लाखपूर्व की कही गई है-जैसी कि भरतचक्रवर्ती की. હૂર્તના આયુષ્યવાળાં પંચેન્દ્રિયતિય દેવોમાં ઉત્પન્ન થઈ જાય છે. તેમની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ત્રણ પાપમની કહેવાનું કારણ એ છે કે ઉત્તરકુરુ આદિમાં મનુષ્યતિયાની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ત્રણ પાપમની હોય છે, અને તેઓ મરીને નિયમથી જ દેવ રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે. આ ઉત્તરકુરુ આદિના જીને ભવ્યદ્રવ્ય જ ગણવામાં આવે છે, કારણ કે તેઓ મરીને દેવેમાં જ ઉત્પન્ન થાય છે–અન્ય ગતિમાં ઉત્પન્ન થતા નથી
गौतम स्वामीना प्रश्न-" नरदेवाणं पुच्छा" मगवन् ! नरवानी સ્થિતિ કેટલા કાળની કહી છે?
महावीर प्रभुन। उत्तर-" गोयमा !" गौतम ! “जहणेण सत्तवा. ससयाइ, उकोसेणं चउराखीई पुव्वसयसहस्वाइं" यवती माहि३५ नरवानी જંઘન્ય સ્થિતિ ૭૦૦ વર્ષની અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ૮૪ લાખ પૂર્વની કહી છે.