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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ०६ खू०४ चन्द्रसूर्ययोरञमहिष्यादिनिरूपणम् २२९
टीका-अथ चन्द्रसूर्ययोरेव अग्रमहिन्यादि स्वरूपं मरूपयितुमाह- चंदस्स णं भंते' इत्यादि, 'चंदस्स णं भंते । जोइसिंदस्स जोइसरणो कइ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! चन्द्रस्य खलु ज्योतिपिकेन्द्रस्य - ज्योतिषिकराजस्य कतिजनमाहिष्यः प्रज्ञप्ताः ? मगवानाह-'जहा दसमसए जाव
जो चेवणं मेहणवत्तियं' हे गौतम ! यथा दशमशत पञ्चमोदेश के अग्रमहिप्यादिवर्णनं कृतं तथैव अत्रापि कर्तव्यं, तथा च यात्र-चन्द्रस्य ज्योतिषिकेन्द्रस्य ज्योतिपियाराजस्य चतस्रः अनमहिष्यः प्रशता, बघथा-चन्द्रप्रभा, ज्योत्स्नामा,
चन्द्र सूर्य की अग्रमहिषीयां आदि की वक्तव्यमा'चंदसण भंते ! जोइसिंदस्स जोइतरन्नो' इत्यादि।
टीकार्थ-इस सूबहारा सूत्रकार ने चन्द्र और सूर्य की ही अग्रमहि षियों आदि के स्वरूप की प्ररूपणा की है-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'चंदलणं भंते ! जोइलिदस्त जोइसरण्णो का अगमहिसीओ पण्गताओ! हे भदन्त ! ज्योतिषिकों के इन्द्र और ज्योतिषिकों के राजा जो चन्द्रदेव हैं-उनकी अग्रमाहिषियां कितनी कही गई हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'जहा दसमलए आव णो चेव णं मेहुणवत्तियं' हे गौतम ! दशवें शतक में पंचम उद्देशक में जमा अग्रमहिषी आदि का वर्णन किया गया है उसी प्रकार का वर्णन उनका यहां पर भी जानना चाहिये तथा-ज्योतिषिकेन्द्र और ज्योतिषिक राजा जो चन्द्रदेव है उसकी चार अग्रमहिषियां कही गई हैं जिनके नाम इस प्रकार से
–ચન્દ્ર સૂર્યની અમહિષીઓ આદિની વક્તવ્યતા" चंदस्स णं भंते ! जोइसिंदस्स जोइसरनो" त्याह
ટીકાર્યું–આ સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકારે ચન્દ્ર અને સૂર્યની અમહિષીઓ આદિના સ્વરૂપનું નિરૂપણ કર્યું છે આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી महावीर प्रभुना प्रश्न पूछे थे 3-" च दस्म णं भते ! जोइसिम्स्त जोइसरणो कइ अगमहिसीनो पण्णताओ?" भगवन् । यतिषिदेवानन्द्र અને તિષિક દેના રાજા એવા જે ચન્દ્રદેવ છે તેમને કેટલી અમહિષીઓ છે? __महावीर प्रभुना उत्तर 'जहा दसमसए जार णो चेव णं मेहुणवत्तियं " હે ગૌતમ! દસમાં શતકના પાંચમા ઉદ્દેશકમાં અમહિષીઓ આદિ વિષે જેવું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ તેમનું વર્ણન અહીં પણ ગ્રહણ કરવું જોઈએ તે ઉદેશમાં આ પ્રકારનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે-જ્યોતિ વિકેન્દ્ર અને તિષિકરાજ એવા જે ચદ્રદેવ છે, તેમને ચાર અશમહિષીઓ