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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ६सू० १ राहुस्वरूपनिरूपणम् वर्णाः प्रज्ञप्ता, तंजहा-किण्हा, नीला, लोहिया, हालिद्दा मुकिल्ला' तद्यथाकृष्णाः, नीला, लोहिताः, हारिद्राः, शुक्ला, अत्यिकालए राहु विमाणे खंजणवण्णाभे पण्णत्ते' अस्ति तावत् कालः कृष्णः, राहुविमानः खञ्जनवर्णाभा-खञ्जनं. दीपमल्लिकामलस्तस्य यो वर्ण स्तद्वदाभा कान्तिर्यस्य स तथाविधः प्रज्ञप्त:उक्तः 'अत्यि नीलए राहुविमाणे लाउयवण्णाभे पण्णत्ते' अस्ति-नीलो राहुविमानः अलाबूवर्णाभ:-आलाबू:-तुम्बकम् , दिव आभा-कान्तियस्य स तथाविधः प्रज्ञता, 'अस्थि लोहिए राहुविमाणे मंजिट्ठवन्नामे पण्णसे' अस्ति तावत् लोहितः-रक्तवर्णः, राहुचिमानः, मञ्जिष्ठावर्णाभः प्रज्ञप्ता, 'अत्थि पीतए राहुविमाणे हॉलिहवण्णामे पण्णते' अस्ति-संभवति, पीतो राहुचिमानः, हारिद्रावर्णाभ:-पीतवर्णः पण्णत्ता' राहुदेव के विमान पांच वर्ण के कहे गये हैं 'तंजहा-किण्हा, नीला, लोहिया, हालिद्दा, सुकिल्ला' कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र और शुक्ल 'अस्थि कालए राहुविमाणे खंजणवण्णाभे पण्णत्ते' राहु का जो कृष्णविमान है वह खंजन वर्ण केजैसीआभावाला कहा गया है। दीपमल्लिका का जो मल होता है-उसका नाम खंजन है। इस खंजन की. जैसी कान्ति होती है-वैसी ही कान्ति इस विमान की है। अस्थि नीलए राहुविमाणे लाउयवण्णाभे पण्णत्ते' तथा राहु का जो नीलविमान हैवह हरी तुंबड़ी के जैसी कान्तिवाला कहा गया है ! 'अलावू' नामतूंबड़ी का है। 'अस्थिलोहिए राहुविमाणे मंजिवण्णाभे पण्णत्ते' राहुदेव का जो लोहितविमान है वह मजीठ की जैसी कान्ति होती है वैसी कान्तिवाला कहा गया है। 'अस्थि पीतए राहुविमाणे हालिइवण्णाभे पण्णत्ते ' तथा राहु का जो पीतविमान है वह हल्दी की कान्ति जैसा सुकिल्ला" (१) Yory, (२) नla, (3) allsa (ena), (४) RF ( ) भने (५) शुस " अस्थिकालए राहुविमाणे खंजणवण्णाभे पण्णत्ते" राहु २ કૃષ્ણવિમાન છે તે ખંજનના વર્ણની આભાવાળું—એટલે કે કાજળ અથવા મેશના જેવી કાન્તિવાળું (દીપકની ત વડે જે કાજળ ઉત્પન્ન થાય છે. તેને ખંજન
३ .) “अत्थि नीलए राहुविमाणे लाग्यवण्णाभे पण्णत्ते " सतुंरे नla विभान छ, allel तुमडनावी तिवाणु छे. “अलावू" भा ५४ तुम भाटे वश छ. “ भत्थिलोहिए राहुविमाणे मज्जिद्ववण्णा पण्णते"
रात पर्नु विमान छ, a 8 वी शतपाणु युछे. " अत्थि पीतए गहुविमाणे हालिदवण्णाभे पण्णत्ते " राहुरे भीमा गर्नु विभान छ, न त उनी शन्ति वा छे. “ अत्यि