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भगवतीसूत्रे
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देशकमारभतें ! रायगिहे ' इत्यादि, 'रायगिहे जाव एवं वयासी' राजगृहे यावत् नगरे स्वामी सम्वत, धर्मकथां श्रोतुं पर्वत् निर्गच्छति, धर्मकथां श्रुत्वा प्रति गता पत्, ततो विनयेन शुश्रूषमाणो गौतमः प्राञ्जलिपुटः पर्युपासीनः, एवम्वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् - 'बहुजणे णं भंते । अन्नमन्नस्स एवमाइक्खर, जात्र परूबेड़' हे भदन्त ! बहुजनः अन्यतीर्थिकः खलु 'अन्योन्यस्य- परस्परम्-एवंवक्ष्यमाणप्रकारेण, आख्याति, यावत् भापते, मज्ञापयति, प्ररूपयति च एवं खलु राहू 'चंदं गेव्हइ एवं खलु राहू चंदं गेव्ह, एवं खलु निश्चयेन राहुश्चन्द्रं गृह्णाति - ग्रसति, एवं खलु निश्चयेन राहुश्चद्रं गृण्हाति ग्रसति, ' से कई मेयं भंते । एवं?' हे भदन्त तत् कथमेतत् अन्यतीर्थिकस्य कथनम्-एवं- सत्यं मन्ये ? अन्यतीर्थिकस्य ग्रसित होने पर चन्द्र को भी हो सकता है, सो इस आशंका की निवृत्ति के लिये सूत्रकार ने इस छठे उद्देशक का कथन किया है - ' रायगिहे जाव एवं क्यासी ' राजगृह नगर में यावत्- महावीर स्वामी पधारे - उनसे धर्मकथा सुनने के लिये परिषद् अपने २ स्थान से निकलकर - उनके पास गई प्रभुने धर्मकथा कही धर्मकथा सुनकर परिषद् पीछे अपने २ स्थान पर चली गई इसके बाद प्रश्न पूछने की अभिलाषावाले गौतम ने दोनों हाथ जोड़कर बड़े विनय के साथ प्रभु से इस प्रकार पूंछा "बहुजणेणं संते ! अन्नमन्नस्स एवमाइक्त्वइ' हे भदन्त ! अन्यतीर्थिक जन परस्पर में ऐसा कहते हैं, यावत्-भाषण करते हैं, प्रज्ञापितं करते हैं, प्ररूपित करते हैं-' एवं खलु राहू चंद गेहह ' एवं खलु राहू. चंदं गेहह ' राहु चन्द्रमा को ग्रसता है, राहु चन्द्रमा को संता है ' से कहमेयं भंते ! एवं' सो ऐसा अन्यतीर्थिकजनों का यह कथन क्या ગ્રસિત થાય ત્યારે ચન્દ્રમાં પણ સ'ભવી શકે છે, આ આશકાનું સૂત્રકારે मही निवारयु यु' हे - " रायगिहे जाव एव वयासी " રાજગૃહ. નગરમાં મહાવીર પ્રભુ પધાર્યા, પરિષદ નીકળી, ધકથા સાંભળીને પરિષદ વિખરાઇ ગઈ, ઇત્યાદિ સમસ્ત કથન અહીં ગ્રહણ કરવુ... જોઇએ ત્યાર બાદ ધમ તત્ત્વને સાંભળવાની ઇચ્છાંવાળા ગૌતમ સ્વામીએ અન્ને હાથ જોડીને વિનયંપૂર્ણાંક भडावीर अलुने या प्रभाषे पूछयुं - " बहु जणेण भंते ! अन्नमन्नस्स एवाईक्खइ, "हे लगवन् ! मन्यतीर्थ परस्परमां मेवु ÷डे छे, भेवु' लाचे छे, क्षेत्री प्रज्ञापना १रे छे भने -सेवी अशा अरे छे -- “ एवं खलु राहू चदं गेण्हइ, एवं खलु राहू चंदं गेण्ड्इ " राहु चन्द्रभानो ग्रास रे छे, राहु शन्द्रभानो श्रीस-रे छे, " से कहमेयं भंते । एवं " हे भगवन् ! अन्य तीर्थ
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