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भगवती सूत्रे
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वान्न् स्यात् ? भगवानाह - ' गोयमा । सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंनकिरिए ' हे गौतम | वायुकापिको वृक्षस्य मूल प्रचालयन् वा, मपातयन् वा, स्वात् कदाचित्रिकियो भवेत् स्यात् कदाचित् चतुष्क्रियो भवेत् स्यात् कदा चित् पञ्चक्रिनो भवेत् इति भात्रः । अत्र परितापादेः सम्भवेऽपि अचित्तमूलापेक्षया त्रिक्रियत्वं बोध्यम्, एवं वृक्षमूलस्य वायुना प्रचालयन् प्रपातयन् वा नदी मित्यादिषु पृथिव्या अनावृतत्वदशायामवसेयम् । एवं कंद एवं जाव वीर्य, पत्राले पाणे वा पुच्छा' एवं पूर्वोक्तरीत्या वायुकायिको वृक्षस्य कन्दम्, एवं यावत् अस्य वीजम् सूत्रदारभ्य वीजपर्यन्तानि दशसंख्यकानि वृक्षाङ्गानि भवन्ति, तथाहि - मूलम् १, कन्दः २, स्कन्धः ३, त्वग् ४ शाखा ५, पत्रालः है ? - इसके उत्तर में प्रभुने ऐसा कहा है कि हे गौतम ! ' सिय तिकिरिए, लिय चकरिए, निय पंचकरिए ' बाबुकायिक जीव जब वृक्ष के सूल को कम्पित करता है, उसे नीचे पृथ्वी पर गिरा देना है तत्र वह कदाचित् तीन क्रियाओं वाला भी होता है, कदाचित् वह चार क्रियाओं वाला भी होता है और कदाचित् वह पांच क्रियाओं वाला भी होना है। यहां वायुद्वारा परिताप आदि होने की संभावना होने पर भी जो उसे त्रिक्रियावाला कहा गया है वह अचित्त सूल की अपेक्षा लेकर कहा गया है। वायु द्वारा वृक्ष के मूल का कम्पित होना अथवा उसका उखड़ कर गिरना यह तब होता है कि जब वृक्ष या तो नदी के तट पर पृथिवी द्वारा अनावृत खुला हो खड़ा होता है । ' एवं कंद, एवं जाव वीयं पचाले माणे वा पुच्छा , मूल से महावीर प्रभुना उत्तर--" सिय तिकिरिए, सिथ चउकिरिए, लिय पंचकरिए " हे गौतम! वृक्षना भूजने पावतो अने तेने नभीन पर પાડતા વસુકાયિક જીવ કચારેક ત્રણ ક્રિયા વાળા હોય છે કયારેક ચાર ક્રિયાઓવાળા હાય છે, અને કયારેક પ ચ ક્રિયાએ વાળા પણ હાય છે. અડ્ડી' વાયુ દ્વારા પરિતાપના આઢિ થત્રાની સભાવના હોવા છતાં પણ વાયુકાયિક જીવને ત્રણ ક્રિયાવાળા જે કહેવામાં આવ્યો છે, તે અચિત્ત મૂળતી અપેક્ષાએ કહે છે. વાયુ દ્વારા વૃક્ષના મૂળને કપાવવાનું અથવા તેને ઉખેડીને નીચે પછાડવ નું ત્યારે જ શકય બને છે કે જયારે વૃક્ષ નદીના કિનારા પર જમીન द्वाराમાટી દ્વારા અનાવૃત દશામાં ઊભુ` હાય છે.
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" एवं कद्द एवं जाव बीय पंचालेमाणे वा पुच्छा " भूजथी सर्धने जीर पर्यन्तना १० वृक्षांगो हेय छे - (१) भूण, (२) ४-६, (३) २४-६ ( 23 ), (४)