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________________ १८ - - - - - - - भगवती इया उव्वति ? पुच्छा' हे भदन्त ! सान्तरं पृथिवीकायिकाः उद्वर्तन्ते ? निरन्तरं पृथिवीकायिकाउद्वर्तन्रो ? इति पृच्छा, भगवानाह-' गंगेया ! णो संतर पुदविक्काइया उव्व ति, निरंतरं पुढत्रिकाया उव्यति ' हे गाङ्गेय ! नो सान्तरं पृथिवीकायिका उद्वर्तन्ते अपितु निरन्तरमेव पृथिवीकायिका उद्वर्तन्ते, एवं जाव वणस्सइकाइया णो संतर, निरंतरं उन्हति' एवं पृथिवीकायिकोक्तरीत्या यावत्-अपकायिक-तेजस्कायिक-वायुकायिक-वनस्पतिकायिका अपि नो सान्तरम् उद्वर्तन्ते, अपितु निरन्तरमेव उद्वर्तन्ते । गाङ्गेयः पृच्छति- संतरं भंते । वेइंदिया उन्नति, काइया उच्चति, निरंतरं पुढविक्काइया उव्वति ) पृथिवीकायिक जीव अपने उत्पत्ति स्थान से सान्तर नहीं निकलते है किन्तु अन्तर से रहित ही निकलते हैं। (एवं जाव वणस्सइकाइया णो संतर निरंतरं उव्वति) इसी तरह का कथन यावत्-अप्कायिक तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक इन एकेन्द्रिय जीवों में भी जानना चाहिये अर्थात् ये भी अपने उत्पत्ति स्थान से विना समयादिरूप काल के व्यवधान के ही निकलते हैं-इनके निकलने में वहां से समयादिरूप काल का व्यवधान नहीं होता है। ___अव गांगेय प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(संतरं भंते ! वेइंदिया उव्वइंति, निरंतर वेइंदिया उव्वटंति ) हे भदन्त ! बेइन्द्रिय जीव क्या अपने उत्पत्ति स्थान से काल के व्यवधान से युक्त निकलते हैं या काल के व्यवधान से रहित निकलते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गंगेया) महावीर प्रभुन। उत्तरे-“ गांगेया !" उगाय(णो मतर पुरविफइया उव्वदृति, निरंतर पुढविकाइया उव्वदृति) पृथ्वीयि: wो पाताना ઉત્પત્તિ સ્થાનમાંથી સાન્તર (વ્યવધાન સહિત) નીકળતા નથી પણ નિરંતર નીકળે છે. એટલે કે કઈ પણ એ સમય પસાર થતું નથી કે જયારે पृथ्वीयिजानु निभाय यतुं न खाय. ( एवं जाव वणस्सइकाइया णो सतर निरंतर उव्वहति) मेरी प्रमाणे माथि, ते४२४यि, वायुायि भने વનસ્પતિકાયિક છે પણ સમયાદિ રૂપ કાળના વ્યવધાન સહિત નીકળતા નથી પણ નિરંતર (વિના વ્યવધાન) નીકળે છે. मांगेय माशाश्ना प्रश्न-( सतर भंते ! इंदिया उव्वति, निरंतर बेइंदिया उध्वति ) B महन्त ! मेन्द्रिय वो पाताना त्यत्ति स्थानमाथी શું કાળના વ્યવધાન સહિત નીકળે છે કે કાળના વ્યવધાનથી રહિત નિરંતર નિકળે છે?
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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