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reefore aint श० ८ ३० ८ सू०३ कर्मबन्धस्वरूपनिरूपणम्
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विकल्पे पर्यवसानं स्यात् न षष्ठो त्रिकल्पः इति भावः, सप्तमस्तु भव्यविशेषस्य ७, अष्टमस्तु अभव्यस्य इति ८ । अत्र भवाकर्षापेक्षेषु अष्ट विकल्पेषु 'बंधी, बंध, frees' इति प्रथमे विकल्पे उपशान्तमोहः १, 'बंधी, बंध, न बंधिस्स ' इति द्वितीये क्षीणमोहः २, 'बंधी, न बंध, वंधिरसह ' इति तृतीये उपशान्तमोह: ३, 'बंधी, न बंध, न बंधिस्स ' इति चतुर्थे शैलेशीगतः४, 'न बंधी, बंध बंधि - स्सः' इति पञ्चमे उपशान्तमोहः५, 'न बंधी, बंध, न बंधिस्सर' इति पष्ठे क्षीणके चरण समय में जो जीव ऐर्यापथिक कर्म का बंध करता है वह उसके बंध पूर्व ही करता है अवन्धपूर्वक नहीं करता है अतः जब वह उसे बांधकर उसका वध करता है तो यह कथन तो द्वितीय भंग में हो आ जाता है- फिर इसके लिये छठे भंगको स्वतंत्र बनानेकी क्या आवश्यकना है। सातवां भंग भव्य विशेष की अपेक्षा से है । और आठवां भंग अभव्य की अपेक्षा से है । भवाकर्ष के जो आठ विकल्प कहे गये हैं - उनमें जो यह (बंधी, बंध, वधिस्सइ) प्रथम विकल्प है वह उपशान्त मोहवाले जीव की अपेक्षा से है, (वंधी, बंध, न बंधिस्सह ) ऐसा जो द्वितीय विकल्प है वह क्षीणमोहवाले जीव की अपेक्षा से है, (बंधी नबंध, वंस्सिइ) यह तृतीय विकल्प उपशान्त मोहवाले की अपेक्षा से है, (बधी न वंधइ न वंधिस्सह ) यह चतुर्थ विकल्प शैलेशी गत जीवकी अपेक्षा से है, (न वंधी, बंध, वधिम्सह) ऐसा जो यह पांचवां farmer है as शान्त मोहवाले जीव की अपेक्षा से है, (वंधी, वध, કારણ કે સચેાગીના ચરમ સમયમાં જે જીવ ઐર્યાયિક કર્માંના ખધ કરે છે, તે તેના મધપૂર્વક જ કરે છે-અમ ધપૂર્વક કરતા નથી. તેથી જ્યારે તેને બાંધીને તેના બધા કરે છે, તે એવું કથન તા ખીજા ભંગમાં પણ આવી જાય છે. તે પછી તેને માટે છઠ્ઠો સ્વતંત્ર વિકલ્પ બનાવવાની શી જરૂર છે ? સાતમે વિકલ્પ ભવ્યવિશેષની અપેક્ષાએ કહ્યો છે, અને આઠમે વિકલ્પ અભવ્ય વિશેષની અપેક્ષાએ કહ્યો છે. ભવાના જે આઠ વિકલ્પા કહ્યાં છે તેમાંના " वधी, वधइ, व धिरसइ " आ पडे। वि उपशान्त भोईवाजा लव अपेक्षाये उह्यो है "वधी, बंध, न बंधिस्स इ આવા જે ખીજો વિકલ્પ हे ते क्षीर भोडवाजी छवनी अपेक्षा उद्योछे, ' बंधी, न वधइ, व धिस्सइ આવે! ત્રીજે જે વિકલ્પ છે તે ઉપશાન્ત-મેાહુવાળાની અપેક્ષાએ કહ્યો છે, "वधी, न बधइ, न बधिर " या थोथे। विश्इप शैलेशी व्यवस्थावाजा अपने अनुसक्षीने ह्यो छे. " न वधी, बंधइ, वधिस्सइ " मा पांयभेो विप उपशान्त भोडवाना भवने अनुसक्षीने ह्यो छे. " वधो, बंधइ, न वधिरसइ "
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